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गर्मियों में बाराँ और खुशनुमा फ़ज़ाओं का क्या करूँ, तुम जो नहीं, | 💞 Status And Shayari

गर्मियों में बाराँ और खुशनुमा फ़ज़ाओं का क्या करूँ,
तुम जो नहीं, मौसम की बदलती अदाओं का क्या करूँ ।

बाद-ए-सबा, कौस-ओ-कुज़ा इन दिनों अच्छे बड़े लगते हैं,
तुम जो नहीं, इन दिलकश नज़ारों का क्या करूँ ।

चिड़िया, तितलियां, भँवरे इन दिनों बेइंतहा चहकते हैं,
तुम जो नहीं, इन परिन्दों की सदाओं का क्या करूँ ।

गुल नर्गिस, सूरजमुखी, सुदबर्ग इन दिनों ख़ूब खिलते हैं,
तुम जो नहीं, इन शगुफ्ता बहारों का क्या करूँ ।

आतिश-ओ-बर्क, शम्स-ओ-क़मर इन दिनों और जलते हैं,
तुम जो नहीं, इन चमकते सितारों का क्या करूँ ।

वक़्त-ए-फरागत में रूमानी तसव्वुर इन दिनों ख़ूब सजते हैं,
तुम जो नहीं, इन ख़्वाब-ओ-ख़्यालों का क्या करूँ ।

रौशनी फ़रोज़ा है चरागों की, इन दिनों लौ और ताबनाक है,
तुम जो नहीं, इन सुलगती शम्माओं का क्या करूँ ।

ज़मीन-ओ-फ़लक भी इन दिनों तशरीह-ए-मसाफत करते हैं,
तुम जो नहीं, इन जुस्तजू की कहकशाँओ का क्या करूँ।
~अ𝐐𝐈ला अɴसाʀ𝗶