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जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँ रूई की तरह उड़ जाएँगे। जब धरती | Avinash Srivastava

जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँ रूई की तरह उड़ जाएँगे। जब धरती धड़-धड़ धड़केगी, जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी। सब ताज उछाले जाएँगे, सब तख़्त गिराए जाएँगे। वो दिन कि जिस का वादा है, लाज़िम है कि हम भी देखेंगे।