स्कूल बना देते, गरीबों और जरूरतमंदों को दे देते, गिराया क्यों | Avinash Srivastava
स्कूल बना देते, गरीबों और जरूरतमंदों को दे देते, गिराया क्यों का लॉजिक तो भावनात्मक है पर कल को उन टॉवर्स में आग लग जाती या फिर कमज़ोर निर्माण के चलते वो कुछ सालों बाद खुद गिर जाते और अगल बगल की बिल्डिंग के ऊपर गिर जाते तो कौन जिम्मेदार होता? जानमाल का कितना नुकसान होता? तब लोग सारा दोष सरकार पर मढ रहे होते। किसी इलाके की ज़मीन पर कितना ऊंचा टॉवर बनाया जा सकता है उसका पैरामीटर होता है ताकि भूकंप के झटकों को सहन कर सके, उसको एकदम दरकिनार किया बिल्डर ने।
- 9 मंजिल के टॉवर के बजाए 40 मंजिल के दो टॉवर खडे कर दिए गए।
- टॉवर्स उस स्थान पर बनाए गए जो जमीन पार्क और खुले एरिया के लिए चिन्हित थी।
- फायर सेफ्टी और आसपास खुली जगह होनी चाहिए का फैक्टर इग्नोर किया।
- टॉवर के पिलर्स कमज़ोर बनाएं गए जिससे खतरा बहोत ज्यादा था।
- कमज़ोर निर्माण के चलते दोनों टॉवर्स में कई जगह हल्की दरार की बात भी चर्चा में थी।
- टॉवर्स गिराने की याचिका फ्लैट ऑनर्स एसोसिएशन ने ही की थी।
- 9 साल तक HC और SC में केस चला तब तक बिल्डर ने टॉवर खडे कर दिए।
- नोएडा अथॉरिटी के लिप्त बाबुओं और अधिकारियों पर भी कार्यवाही होगी।
ट्विन टावर का निर्माण 2009 में शुरू हुआ था. इस दोनों टावर में कुल 950 से ज्यादा फ्लैट्स बनाए जाने थे. बहरहाल, कई खरीददारों ने यह आरोप लगाया कि बिल्डिंग के प्लान में बदलाव किया गया है और साल 2012 में वे इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए थे। आंकड़ों के मुताबिक, इसमें 633 लोगों ने फ्लैट बुक कराए थे. इनमें 248 लोगों ने रिफंड ले लिया और करीबन 133 खरीददारों को दूसरे प्रोजेक्ट में मकान दिए गए. लेकिन तमाम खरीददारों में 252 ऐसे लोग हैं जिन्होंने न तो रिफंड लिया है और न ही उन्हें किसी दूसरे प्रोजेक्ट में शिफ्ट किया गया। इन्हें पूरा पैसा 12% हर साल के इंटरेस्ट के साथ वापस करने के आदेश दिए गए हैं।
हर विषय को भावनात्मक रुप से नहीं देखा जाता कभी कभी तथ्यों का अध्ययन भी करना चाहिए।