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।।राम।। हे नाथ ! हे मेरे नाथ !! मैं अपको भूलूँ नह | भगवद्भाव 'प्रसाद' परिवार

।।राम।।
हे नाथ ! हे मेरे नाथ !!
मैं अपको भूलूँ नहीं !
वास्तव में देखा जाय तो मन की चंचलता दोषी नहीं है । मन बालकवत् है । जैसे भगवान् नित्य किशोर हैं, ऐसे मन भी नित्य बालक है । मन कभी बूढ़ा नहीं होता । बालक का सहज स्वभाव है चंचलता । जैसे बालक के पास चार गुण हैं, वैसे ही मन के पास भी चार गुण हैं । यथा-
१.चंचलता, २.प्रमथनशीलता,३.बलवत्ता, ४. दृढ़ता ।
घर में कोई बालक हो, उसकी चंचलता अपने माता-पिता तथा सम्पूर्ण परिवार को सुख देती है । यदि बालक चंचलता न करे, ख़ामोश हो जाय तो परिवार के सब लोग चिन्तित हो जाते हैं कि इसको क्या हो गया ? किन्तु यदि वह बालक अपना घर छोड़कर दूसरे के घर में जाकर चंचलता करे एवं उसके नाम पर शिकायत आ जाय तब माता-पिता तथा परिवार को दु:ख होता है ।
बालक अपने घर में चंचलता करता है तो सुख होता है, परन्तु दूसरों के घर में चंचलता करने से दु:ख होता है । वह बालक अपने घर में चंचलता न करने से दु:ख होता है, परन्तु दूसरों के घर में चंचलता न करने से सुख होता है । इससे यह सिद्ध होता है कि मन की चंचलता दोषी नहीं है । मन अपना घर छोड़कर दूसरों के घर में जाकर चंचलता करे तो वह दोषी है । यदि उसकी चंचलता दोषी होती तब अपने घर में की हुई चंचलता को दोषी मानना चाहिये, परन्तु दोष के बदले वह गुण मालुम पड़ता है ।
अपना घर क्या है ? जो वास्तव में हमारे हैं एवं हमारे साथ नित्य रहने वाले है, उनका घर ही अपना घर है । एकमात्र भगवान् ही अपने हैं, उनके पास रहना अर्थात् उनकी स्मृति बने रहना अपना घर है ।
'मेरे प्यारे का स्वभाव'
स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज