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भारत में जाति व्यवस्था - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य | IAS

भारत में जाति व्यवस्था - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य पीसीएस परीक्षाओं के लिए समसामयिकी लेख
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सन्दर्भ:-

●हाल के समय में भारत में जातिगत तनाव की स्थिति दृष्टिगत हुई है।

परिचय

●जाति व्यवस्था एक सामाजिक बुराई है जो प्राचीन काल से भारतीय समाज में मौजूद है। वर्षों से लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं लेकिन फिर भी जाति व्यवस्था ने हमारे देश के सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखी है।

●भारतीय समाज में सदियों से कुछ सामाजिक बुराईयां प्रचलित रही हैं और जाति व्यवस्था भी उन्हीं में से एक है। हालांकि, जाति व्यवस्था की अवधारणा में इस अवधि के दौरान कुछ परिवर्तन जरूर आया है और इसकी मान्यताएं अब उतनी रूढ़िवादी नहीं रही है जितनी पहले हुआ करती थीं, लेकिन इसके बावजूद यह अभी भी देश में लोगों के धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन पर असर डाल रही है।

उत्पत्ति

●ऋग वैदिक कालीन वर्ण व्यवस्था ( व्यवसाय के आधार पर निर्धारण ) उत्तर वैदिक काल के आते आते जाति व्यवस्था (जन्म के आधार पर निर्धारण) में परिवर्तित हो गई थी।

●यह माना जाता है कि ये समूह हिंदू धर्म के अनुसार सृष्टि के निर्माता भगवान ब्रह्मा के द्वारा अस्तित्व में आए। भारत में जाति व्यवस्था लोगों को चार अलग-अलग श्रेणियों - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र - में बांटती है।

●विकास सिद्धान्त के अनुसार सामाजिक विकास के कारण जाति प्रथा की उत्पत्ति हुई है। सभ्यता के लंबे और मन्द विकास के कारण जाति प्रथा मे कुछ दोष भी आते गए। इसका सबसे बङा दोष छुआछुत की भावना है। परन्तु विभिन्न प्रयासों से यह सामाजिक बुराई दूर होती जा रही है।

जाति प्रथा की समस्याएं

लोकतंत्र के विरुद्ध :-

●लोकतंत्र जहाँ सभी को समान समझता है।एक लोकतांत्रिक देश के नाते संविधान के अनुच्छेद 15 में राज्य के द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किए जाने की बात कही गई है। अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता का उन्मूलन किया गया है। परन्तु वास्तव में यह आज भी किसी न किसी रूप में विद्यमान है। चुकी जाति व्यवस्था समानता नहीं बल्कि दो वर्गों में वरिष्ठता के सिद्धांत को मानती है अतः यह लोकतंत्र के विरुद्ध है।

समाज का अंग:-

●निःसंदेह जाति प्रथा एक सामाजिक कुरीति है। ये विडंबना ही है कि देश को आजाद हुए सात दशक से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी हम जाति प्रथा के चंगुल से मुक्त नहीं हो पाएं हैं। यहाँ तक की लोकतान्त्रिक चुनावो में भी जाति एक बड़े कारक के रूप में विद्यमान है।

राष्ट्रीय एकता हेतु समस्या :-

●जाति प्रथा न केवल हमारे मध्य वैमनस्यता को बढ़ाती है बल्कि ये हमारी एकता में भी दरार पैदा करने का काम करती है। जाति प्रथा प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में बचपन से ही ऊंच-नीच, उत्कृष्टता निकृष्टता के बीज बो देती है। जो कालांतर में क्षेत्रवाद का कारक भी बन जाती है। जाति प्रथा से आक्रांत समाज की कमजोरी विस्तृत क्षेत्र में राजनीतिक एकता को स्थापित नहीं करा पाती तथा यह देश पर किसी बाहरी आक्रमण के समय एक बड़े वर्ग को हतोत्साहित करती है। स्वार्थी राजनीतिज्ञों के कारण जातिवाद ने पहले से भी अधिक भयंकर रूप धारण कर लिया है, जिससे सामाजिक कटुता बढ़ी है।

विकास के प्रगति में बाधक :

●जातिगत द्वेष से उत्पन्न तनाव , अथवा राजनैतिक पार्टियों द्वारा किये गए जातिगत तुष्टिकरण से राष्ट्र की प्रगति बाधक होती है।

जाति प्रथा के विषय में महात्मा गांधी तथा भीम राव आंबेडकर

●महात्मा गाँधी तथा भीम राव आंबेडकर भारत में जातिगत सुधारो के बड़े समर्थनकर्ता माने जाते हैं। यद्यपि इनका लक्ष्य समान था परन्तु इनके मध्य कई प्रकार की वैचारिक भिन्नताएं थीं

●एक ओर जहाँ गाँधी जी हिन्दू धर्म के अंदरसुधार कर जाति प्रथा की समस्याओं को समाप्त करना चाहते थे ,वहीँ अम्बेडकर हिन्दू धर्म से अलग होकर दलितोद्धार चाहते थे।

●गाँधी जी जहाँ वेद , एवं ग्रंथो की उपयुक्त व्याख्या से हरिजनोद्धार की कामना करते थे वहीँ अमबेडकर ग्रंथो में विश्वास नहीं करते थे।

●गाँधी जी हरिजन को हिन्दू धर्म का अंग मानते थे वहीँ अम्बेडकर उन्हें हिन्दू समाज के बाहर धार्मिक अल्पसंख्यक मानते थे। इसी मत विरोध की एक संधि पूना पैक्ट के नाम से जानी जाती है

●जहाँ गाँधी जी ग्राम स्वराज की बात करते थे वहीँ अम्बेडकर गावो को जातिवाद का प्रमुख केंद्र ,मानकर शहरीकरण पर जोर देते थे।

निष्कर्ष

●वास्तव में जातिप्रथा समाज की एक भयानक विसंगति है जो समय के साथ साथ और प्रबल हो गई। यह भारतीय संविधान में वर्णित सामाजिक न्याय की अवधारणा कजी प्रबल शत्रु है तथा समय समय पर देश को आर्थिक ,सामाजिक क्षति पहुँचाती है। निस्संदेह सरकार के साथ साथ , जन सामान्य , धर्म गुरु , राजनेता तथा नागरिक समाज का उत्तरदायित्व है कि यह विसंगति जल्द से जल्द समाप्त हो।