जब-जब पिताजी ने अपने कंधों पर बैठाया यह जहां बड़ा ही हसीन लगने लगता है उड़ने लगता हूं बिन पंखों के ही आसमान को एकटक निहारता हूं! मेरी इतनी औकात नहीं मैं उन्हें कुछ दे सकूं उनकी फटी बनियान के छेदो में सितारे गढ़ सकू एक ऐसा छोटा सा ख्वाब देखता हूं!! 2.9K viewsDear... ComRade, 12:31