क्यों न नज़रों को समझाया जाए... क्यों न आतिशों को बुझाया जाए... हद हो गई है ख़ुद को बर्बाद करनें की... क्यों न एक शाम मौत को बुलाया जाए...! 1.0K viewsआवारा छोरा, 07:42