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सनातन धर्म • Sanatan Dharma

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2021-02-04 19:40:40
।।ऐं।।
307 views𝑱𝒂𝒈𝒅𝒊𝒔𝒉 𝒑𝒓𝒂𝒔𝒂𝒅 , edited  16:40
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2021-02-03 05:11:55 वेदों में वेदमाता,देवमाता एवं विश्वमाता भगवती माँ गायत्री को सद्बुद्धि, सदज्ञान की देवी बताया गया है।
लेकिन शास्त्र के अनुसार अगर जो भी मनुष्य सूर्योदय से पहले उगते सूर्य का ध्यान करते हुये माँ गायत्री के इन 108 नामों का जप या उच्चारण करते हैं माँ गायत्री उनकी अनेकों मनोकामनाएं पूरी कर देती हैं। माता गायत्री के 108 नामों का जप करने के बाद इस गायत्री मंत्र का 1माला जप भी करें।
" ।ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ तत्सवितुर्वेरण्य भगों देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् । "
।। माँ गायत्री के 108 नाम ।।
1. ॐ तरुणादित्य सङ्काशायै नमः।
2. ॐ सहस्रनयनोज्ज्वलायै नमः।
3. ॐ विचित्र माल्याभरणायै नमः।
4. ॐ तुहिनाचल वासिन्यै नमः।
5. ॐ वरदाभय हस्ताब्जायै नमः।
6. ॐ रेवातीर निवासिन्यै नमः।
7. ॐ प्रणित्यय विशेषज्ञायै नमः।
8. ॐ यन्त्राकृत विराजितायै नमः।
9. ॐ भद्रपादप्रियायै नमः।
10. ॐ गोविन्दपदगामिन्यै नमः।
11. ॐ देवर्षिगण सन्तुस्त्यायै नमः।
12. ॐ वनमाला विभूषितायै नमः।
13. ॐ स्यन्दनोत्तम संस्थानायै नमः।
14. ॐ धीरजीमूत निस्वनायै नमः।
15. ॐ मत्तमातङ्ग गमनायै नमः।
16. ॐ हिरण्यकमलासनायै नमः।
17. ॐ धीजनाधार निरतायै नमः।
18. ॐ योगिन्यै नमः।
19. ॐ योगधारिण्यै नमः।
20. ॐ नटनाट्यैक निरतायै नमः।
21. ॐ प्राणवाद्यक्षरात्मिकायै नमः।
22. ॐ चोरचारक्रियासक्तायै नमः।
23. ॐ दारिद्र्यच्छेदकारिण्यै नमः।
24. ॐ यादवेन्द्र कुलोद्भूतायै नमः।
25. ॐ तुरीयपथगामिन्यै नमः।
26. ॐ गायत्र्यै नमः।
27. ॐ गोमत्यै नमः।
28. ॐ गङ्गायै नमः।
29. ॐ गौतम्यै नमः।
30. ॐ गरुडासनायै नमः।
31. ॐ गेयगानप्रियायै नमः।
32. ॐ गौर्यै नमः।
33. ॐ गोविन्दपद पूजितायै नमः।
34. ॐ गन्धर्व नगराकारायै नमः।
35. ॐ गौरवर्णायै नमः।
36. ॐ गणेश्वर्यै नमः।
37. ॐ गुणाश्रयायै नमः।
38. ॐ गुणवत्यै नमः।
39. ॐ गह्वर्यै नमः।
40. ॐ गणपूजितायै नमः।
41. ॐ गुणत्रय समायुक्तायै नमः।
42. ॐ गुणत्रय विवर्जितायै नमः।
43. ॐ गुहावासायै नमः।
44. ॐ गुणाधारायै नमः।
45. ॐ गुह्यायै नमः।
46. ॐ गन्धर्वरूपिण्यै नमः।
47. ॐ गार्ग्य प्रियायै नमः।
48. ॐ गुरुपदायै नमः।
49. ॐ गुह्यलिङ्गाङ्ग धारिन्यै नमः।
50. ॐ सावित्र्यै नमः।
51. ॐ सूर्यतनयायै नमः।
52. ॐ सुषुम्नाडि भेदिन्यै नमः।
53. ॐ सुप्रकाशायै नमः।
54. ॐ सुखासीनायै नमः।
55. ॐ सुमत्यै नमः।
56. ॐ सुरपूजितायै नमः।
57. ॐ सुषुप्त व्यवस्थायै नमः।
58. ॐ सुदत्यै नमः।
59. ॐ सुन्दर्यै नमः।
60. ॐ सागराम्बरायै नमः।
61. ॐ सुधांशुबिम्बवदनायै नमः।
62. ॐ सुस्तन्यै नमः।
63. ॐ सुविलोचनायै नमः।
64. ॐ सीतायै नमः।
65. ॐ सर्वाश्रयायै नमः।
66. ॐ सन्ध्यायै नमः।
67. ॐ सुफलायै नमः।
68. ॐ सुखदायिन्यै नमः।
69. ॐ सुभ्रुवे नमः।
70. ॐ सुवासायै नमः।
71. ॐ सुश्रोण्यै नमः।
72. ॐ संसारार्णवतारिण्यै नमः।
73. ॐ सामगान प्रियायै नमः।
74. ॐ साध्व्यै नमः।
75. ॐ सर्वाभरणपूजितायै नमः।
76. ॐ वैष्णव्यै नमः।
77. ॐ विमलाकारायै नमः।
78. ॐ महेन्द्र्यै नमः।
79. ॐ मन्त्ररूपिण्यै नमः।
80. ॐ महालक्ष्म्यै नमः
81. ॐ महासिद्ध्यै नमः।
82. ॐ महामायायै नमः।
83. ॐ महेश्वर्यै नमः।
84. ॐ मोहिन्यै नमः।
85. ॐ मधुसूदन चोदितायै नमः।
86. ॐ मीनाक्ष्यै नमः।
87. ॐ मधुरावासायै नमः।
88. ॐ नागेन्द्र तनयायै नमः।
89. ॐ उमायै नमः।
90. ॐ त्रिविक्रम पदाक्रान्तायै नमः।
91. ॐ त्रिस्वर्गायै नमः।
92. ॐ त्रिलोचनायै नमः।
93. ॐ सूर्यमण्डल मध्यस्थायै नमः।
94. ॐ चन्द्रमण्डल संस्थितायै नमः।
95. ॐ वह्निमण्डल मध्यस्थायै नमः।
96. ॐ वायुमण्डल संस्थितायै नमः।
97. ॐ व्योममण्डल मध्यस्थायै नमः।
98. ॐ चक्रिण्यै नमः।
99. ॐ चक्र रूपिण्यै नमः।
100. ॐ कालचक्र वितानस्थायै नमः
101. ॐ चन्द्रमण्डल दर्पणायै नमः।
102. ॐ ज्योत्स्नातपानुलिप्ताङ्ग्यै नमः।
103. ॐ महामारुत वीजितायै नमः।
104. ॐ सर्वमन्त्राश्रयायै नमः।
105. ॐ धेनवे नमः।
106. ॐ पापघ्न्यै नमः।
107. ॐ परमेश्वर्यै नमः।
108. ॐ वेदमातायै नमः।

@Sanatan
476 views𝑱𝒂𝒈𝒅𝒊𝒔𝒉 𝒑𝒓𝒂𝒔𝒂𝒅 , edited  02:11
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2021-02-02 12:30:06 राष्ट्रकवि की उपाधि से सम्मानित, ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, तथा पद्मभूषण से नवाजित सर्वश्रेष्ठ महानतम कवि 'श्री रामधारी सिंह दिनकर ' की जगत प्रसिद्ध कालजयी खंड काव्य रश्मिरथी का एक अल्पांश प्रस्तुत करना चाहता हूं, मेरा कटिबद्ध सविनय विनम्र निवेदन/अनुरोध है कि कृपया इस कविता को एक बार पूरा पढ़ें...
इस कविता का शीर्षक इस प्रकार है:-


कृष्ण की चेतावनी


वर्षों तक वन में घूम-घूम,
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।

मैत्री की राह बताने को,
सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को,
भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान् हस्तिनापुर आये,
पांडव का संदेशा लाये।

‘दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे!

दुर्योधन वह भी दे ना सका,
आशीष समाज की ले न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला,
जो था असाध्य, साधने चला।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।

हरि ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान् कुपित होकर बोले-
‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।

यह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय है संसार सकल।
अमरत्व फूलता है मुझमें,
संहार झूलता है मुझमें।

‘उदयाचल मेरा दीप्त भाल,
भूमंडल वक्षस्थल विशाल,
भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,
मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।
दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,
सब हैं मेरे मुख के अन्दर।

‘दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,
मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,
चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,
नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।
शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,
शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।

‘शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,
शत कोटि विष्णु जलपति, धनेश,
शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,
शत कोटि दण्डधर लोकपाल।
जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें,
हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें।

‘भूलोक, अतल, पाताल देख,
गत और अनागत काल देख,
यह देख जगत का आदि-सृजन,
यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, इसमें कहाँ तू है।

‘अम्बर में कुन्तल-जाल देख,
पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख,
मेरा स्वरूप विकराल देख।
सब जन्म मुझी से पाते हैं,
फिर लौट मुझी में आते हैं।

‘जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,
साँसों में पाता जन्म पवन,
पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर,
हँसने लगती है सृष्टि उधर!
मैं जभी मूँदता हूँ लोचन,
छा जाता चारों ओर मरण।

‘बाँधने मुझे तो आया है,
जंजीर बड़ी क्या लाया है?
यदि मुझे बाँधना चाहे मन,
पहले तो बाँध अनन्त गगन।
सूने को साध न सकता है,
वह मुझे बाँध कब सकता है?

‘हित-वचन नहीं तूने माना,
मैत्री का मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ,
अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।

‘टकरायेंगे नक्षत्र-निकर,
बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,
फण शेषनाग का डोलेगा,
विकराल काल मुँह खोलेगा।
दुर्योधन! रण ऐसा होगा।
फिर कभी नहीं जैसा होगा।

‘भाई पर भाई टूटेंगे,
विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,
वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे,
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।
आखिर तू भूशायी होगा,
हिंसा का पर, दायी होगा।’

थी सभा सन्न, सब लोग डरे,
चुप थे या थे बेहोश पड़े।
केवल दो नर ना अघाते थे,
धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे।
कर जोड़ खड़े प्रमुदित,
निर्भय, दोनों पुकारते थे ‘जय-जय’!

- रामधारी सिंह दिनकर


@Sanatan
435 viewsMalay Prasoon, 09:30
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2021-01-31 16:22:20 .
रुद्रमणी सर्पया (५)
इसलिए एक मुखी रुद्राक्ष शिव ने दुर्लभ कर दिया क्योंकि मनुष्य भेड़ चाल चलनता है भीड़ के पीछे भीड़ भागती है।सृष्टि को चलाने वाली ताकतें उन्हीं का अध्यात्म चलाती है। उन्हीं गुरुओं के यहां भीड़ भेजती है जहां भेड़ चाल होती है उन्हीं गुरुओं को चलाती है जो भेड़ चाल के अध्यात्म के प्रवर्तक होते हैं अर्थात मनुष्य को भेड़ बनाने में सहायक होते हैं। भेड़ों को चलाना ज्यादा मुश्किल नहीं है एवं भेड़ का चरवाहा सबसे ज्यादा सुखी होता है क्योंकि एक भीड़ के पीछे सब भेड़ चलती है एवं इसे कहते हैं अंधभक्ति अंधश्रद्धा एक भेड़ अगर कटती है तो सब भीड़ कट जाती है वह एक के बाद एक बलिवेदी पर अपना सर स्वयं कटने के लिए रखी जाती है इस प्रकार का भेड़ चिंतन प्रदान करने वाले राजनेता अध्यात्मिक गुरु राष्ट्रधर्म कॉम इत्यादि को सृष्टि का संचालन करने वाली शक्तियां संपूर्ण प्रक्षय देती है क्योंकि इससे पृथ्वी की उम्र बढ़ती है एवं संचालक शक्तियों को लंबे समय तक गुलाम जीव सेवा के लिए हाथ जोड़े दिखाई पड़ते हैं। कौन नौकर को खोना चाहेगा? रुद्राक्ष अंध नेत्रों से उत्पन्न नहीं हुआ है वह तो शिव के परा प्रकाशित नेत्रों से उत्पन्न हुआ है अतः रुद्राक्ष धारण करने वाला क्यों भेड़ चाल चलेगा? शिवलोक में सभी रुद्राक्ष धारण करते हैं एक-एक शिवगण असंख्य ब्रह्मांडोको बनाने और मिटाने की क्षमता रखते हैं शिवलोक में जब स्थान प्राप्त होता है तो शिव स्वयं अपने हाथों से रुद्राक्ष धारण करा तपस्वी को शिव गणों में सम्मिलित कर लेते हैं।
@Sanatan
511 views𝑱𝒂𝒈𝒅𝒊𝒔𝒉 𝒑𝒓𝒂𝒔𝒂𝒅 , edited  13:22
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2021-01-31 16:17:29 .
रूद्रमणि - सर्पया (४)
ऊपर मैंने असंतुलन कि कुछ स्थितियों का वर्णन किया था।मानव शरीर एक लघु ब्रह्मांड है और इस प्रकार शरीर में असंतुलन होता है उसी प्रकार ब्रह्मांड में भी असंतुलन होता है एवं इन असंतुलनो को दूर करने के लिए ही शिव ने शिवमणि का सृजन किया है। इन शिवमणियो को कंठ बाजू बंध हृदय यज्ञोपवीत सीखा मस्तक इत्यादि पर धारण कर शरीर की असंतुलनात्मक स्थितियों का निवारण पलक झपकते ही किया जा सकता है। हाथ पैर ज्यादा संवेदनशील हो गए हो ह्रदय की धड़कने अनियंत्रित हो गई हो मन भटकने लगा हो ऊंचाई से देखने में घबराहट होने लगे अकारण दु:स्वप्न आने लगे हो भयग्रस्तता हो जाए तो फिर रुद्राक्ष बंधो के द्वारा रुद्राक्ष माला के द्वारा कुछ घंटों में ही संतुलन पुनः निर्मित किया जा सकता है। तीन सात मुखी रुद्राक्ष धारण कर लो पूर्ण श्रद्धा के साथ 21 मुखी का परिणाम मिलेगा 200 रुपए काम हो जाएगा। शनि की साढ़ेसाती चल रही हो तो 7 मुखी रुद्राक्ष के 3 दाने कंठ में चांदी मे बनाकर धारण कर लो मात्र 250 रुपए में बाजार में अच्छे दाने चांदी में जड़ जाएंगे। शनी की रूद्रता से 100% आराम मिलेगा। लक्ष्मी प्राप्ति हेतु व्यापार वृद्धि हेतु धन की आवाक बढ़ाने हेतु सबसे सस्ते सात मुखी रुद्राक्ष श्रेष्ठतम हैं। सात मुखी रुद्राक्ष धारण किया 24 घंटे में लक्ष्मी की आवाक दिखाई दे जाएगी। रुद्राक्ष को प्राण प्रतिष्ठित करने के पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए।किसी भी शिवलिंग के समीप रुद्राक्ष फल को रख दो और दूसरे दिन उसे धारण कर लो रुद्राक्ष स्वयं प्राण प्रतिष्ठित होते हैं। मनुष्य की औकात नहीं उन्हें प्राण प्रतिष्ठित करने की। हाँ रुद्राक्ष शिवलिंग का साक्षात विग्रह है। इनकी विभिन्न शिव शक्ति मंत्रों से पूजा उपासना करने में कोई बुराई भी नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि 21 मुखी रुद्राक्ष 18 मुखी रुद्राक्ष 32 मुखी रुद्राक्ष इत्यादि पांच मुखी रुद्राक्ष से श्रेष्ठ हैं। यह बिल्कुल बकवास है मैंने सात मुखी में छह मुखी में पांच मुखी में तीन मुखी में इतने श्रेष्ठ एवं उत्कृष्ट दाने देखे हैं जो कि 25 से 100 रुपए में मिल जाऐ और लाखों रुपए के रुद्राक्ष के दानों से ज्यादा प्रभावशाली है। वर्तमान के युग में तीन प्रकार के रूद्राक्षों साधकों और गृहस्थो को बहुत अच्छे परिणाम दिए हैं जितने विवाह संबंधित समस्या आई है उसमें गणेश रुद्राक्ष ने चमत्कारिक सफलता दी है 100% परिणाम दिए हैं।
रूद्रता से रूद्रता ही उत्पन्न होती है। अध्यात्म में इतनी शक्ति है इतनी विलक्षणता है कि सन्यासी,ब्रह्मचारी,रुद्राक्षधारी को यमराज भी स्पर्श नहीं कर सकते हैं। उन्हें तो रूद्र लोक के रूद्र स्वरूप गण ही लेने आते हैं और अपनी ही विधि से लेकर जाते हैं। आत्मा को इतनी रूद्रता प्रदान करते हैं मस्तिष्क को इतना रुदन प्रदान करते हैं कि जीव जब आत्मा छोड़ता है तो उसकी आत्मा में इतनी गति होती है इतना पैननापनहोता है कि उसे सीधे ब्रह्मांड को भेजते हुए रूद्र लोक में जाकर स्थित हो जाता है।और पुनः लौट कर नहीं आता इसलिए रुद्राक्ष में छेद होता है बीच में। चारों तरफ मुख ही मुख और बीच में छिद्र सीधे भेदो और निकल जाओ। मूखों में मत फसो धारियों को मत गिनो। रुद्राक्ष ब्रह्मांड की संरचना का प्रतीक है भेदन सिर्फ मध्य में होता है रूद्र लोक का रास्ता मध्य से जाता है। धारीयों से चढोगे तो नीचे गिर जाओगे परंतु नीचे से निकलोगे तो भेद कर निकल जाओगे।नाथ पंथ में जब इच्छा होती है तो गुरु धागा देता है और साथ में रुद्राक्ष के 32 दाने एवं कहता है कि बिना रुके जल्दी से जल्दी धागे को रुद्राक्ष के छिद्रों मैं से निकालते हुए माला बनाओ इस कला में पारंगत होओ क्योंकि यही भेदन क्रिया है यही ग्रंथि भेदन का तरीका है। देव ग्रंथि भेदो, शक्ति ग्रंथि भेदो, ब्रह्म ग्रंथि भेदो और सीधे निकल जाओ। नाथ गुरु अपने चेले से कहता है धरती पर लकड़ी लगा उसके ऊपर पीठा बना और फिर उस पर बैठकर मंत्र जप रुद्राक्ष माला से तभी संतुलन का खेल सीखेगा कही नहीं फंसेगा और सीधे निकल जाएगा। नाथों में 1 मुखी रुद्राक्ष के पहचान की बड़ी अद्भुत पद्धति है।वे एक मुखी रुद्राक्ष को भेड़ के गले में बांध देते हैं और बैठ कर तमाशा देखते हैं अगर रुद्राक्ष वास्तविक हुआ तो एक मुखी रुद्राक्ष धारण की हुई भेड़ भेड़ चाल नहीं चलती वह सब भेड़ों से अलग चलने लगती है अपना रास्ता स्वयं बनाने लगती है वह एक के पीछे एक चलने की प्रवृत्ति से मुक्त हो जाती है और नाथ समझ जाता है कि एक मुखी रुद्राक्ष असली है। क्रमशः
@Sanatan
442 views𝑱𝒂𝒈𝒅𝒊𝒔𝒉 𝒑𝒓𝒂𝒔𝒂𝒅 , edited  13:17
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2021-01-31 07:03:12 रूद्रमणि - सर्पया (३)
डिम्बं डिम्बं सुडिम्ब पच पच सहसा झाम्यं झाम्यं प्रझम्यं।
नृत्यन्ती शब्दवाद्ये:स्त्रजमुरसि शिर:शेखरं ताक्ष्यपक्षै:।।
पूर्ण वक्त्रासवानां यममहिषमहाश्रृंगमादाय पाणौ।
पायाद् वो वन्द्यमान: प्रलयमुदितया भैरव: कालरात्रया।।
वद्धवा खङ्गाङ्गश्रृङ्गे कपिलमुरुजटामण्डलं पद्मयोने:।
कृत्वादैत्योत्तमाङ्गै स्त्रजमुरसि शिर:शेखरं ताक्ष्यरपक्षै:।
या देवी भूक्तविव्श्रा पिबती जगदिदं साद्रिभूपीठमाद्यं
सा देवी निष्कलंङ्का कलिततनुलता पातुन: पालनीयान् ।।

महर्षि वशिष्ठ ने अत्यंत ही सुंदर उपरोक्त श्लोक में महाभैरव और महाभैरवी का वर्णन करते हुए कहा है कि प्रचंड उन्माद में डूबे महाभैरव और महाभैरवी के गले में महारुद्राक्षों की माला खड़क उठी, डिम-डिम-डिडिम की महाध्वनि से सृष्टि दहल उठी नृत्य करते महाभैरव और महाभैरवी ने सृष्टि प्रलय के महा दृश्य को उपस्थित करना प्रारंभ किया महा भैरव के तीसरे नेत्र में पाशुपतास्त्र, अघोरास्त्र,भैरवअस्त्र,कालिकास्त्र प्रक्षेपित होने लगे एवं समस्त ब्रह्मांड सूर्य ग्रह नक्षत्र इत्यादि एक-एक कर भस्मीभूत होने लगे और उनके अंदर से प्रवाह होते रक्तद्रव्य को महाभैरवी उन्मुक्त हो पान करने लगी।देखते ही देखते वहां भैरव ने उन्मुक्त महाभैरवी को गोद में उठाकर स्थित कर लिया और इस प्रकार जैसे ही महाभैरवी महाभैरव के अंग में स्थित हुई समस्त जीवों ने शिव के मस्तक को संपूर्ण शयन अर्थात महाशयन का सानिध्य प्राप्त किया शिव और महाकाली ही जीव का अंतिम शयन स्थान है। हरेक कार्य का पारितोषिक होता है, माह भर कार्य करो तो कुछ धन प्राप्त होते हैं, वर्षभर वृक्ष श्रम करता है तो कुछ फल उत्पन्न होते हैं, वर्ष भर समुद्र तपता है तो कुछ माह वर्षा मिलती है, विष्णु सृष्टि का पालन करते हैं तो जगदीश्वर कहलाते हैं। ब्रह्मा सृष्टि की रचना करते हैं तो रचनाकार रूपी फल से सुपूजित होते हैं, लक्ष्मी प्रदान करती है अतः सर्व लोको में सुपूजित है अर्थात सभी को फल मिलता है सभी फल प्राप्त कर संतुष्ट होते हैं।परंतु प्रलय का कार्य संपन्न करने वाले महाकाल और महाकाली को क्या फल प्राप्त होता है? शिव के तीसरे नेत्र को भस्म ज्योति भी कहा गया है। इसी भस्म ज्योति के माध्यम से शिव भस्म करते हैं और भस्मीकरण संपन्न होने के पश्चात भस्म ज्योति रूपी त्रिनेत्र से फल रूपी कुछ बूंदे गिर ही जाती है। भस्म ज्योति भी स्त्रावित होती है और इस स्त्राव से उत्पन्न होते हैं रूद्र फल रुद्राक्ष। रुद्राक्ष की उत्पत्ति प्रमाणीकरण है भस्म ज्योति का शिव के एकमात्र कार्य संहार का। जो रुला दे,जो स्त्रावित कर दे, जो रोते को भी चुप करा दे,जो रुलाने वाले को भी रुला दे अर्थात पिघलाने वाले को भी पिधला दे दंड देने वाले को भी दंड दे दे वही रुद्र और रौद्रा। रुद्र और रौद्रा के सम्मिश्रण से जिस फल की उत्पत्ति होती है उसका नाम है रुद्राक्ष। शिव मणि रूद्र की आंखों से झरती हुई दिव्य जल बूंदे ही शिवमणि कहलाती है और जब कुछ नहीं बचता जब सूर्य की ज्योति भी नहीं बचती चंद्रमा का अमृत भी नहीं बचता ग्रह नक्षत्रों के प्रकाश भी नहीं बचते रत्नों की चमक भी नहीं बचती तो केवल रूद्रमणि शिवमणि ही बचती है। महाकाली के कंठ,मस्तक,बाजू,कमर को श्रृगारित करने हेतु शोभायामन करने हेतु। महाकाल एक-एक कर शिवमणि के माध्यम से ही महाकाली के कृष्णवर्णीय दिव्य शरीर को श्रृगारित करते हुए उन्हें शिव प्रकाश से अच्छादित कर देते हैं। ‌‌ क्रमशः
@Sanatan
437 views𝑱𝒂𝒈𝒅𝒊𝒔𝒉 𝒑𝒓𝒂𝒔𝒂𝒅 , edited  04:03
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2021-01-31 07:01:41 .
रूद्रमणि - सर्पया (२)
जो ताकत इस पृथ्वी को चला रही है जो वर्तमान के ब्रह्मा इस धरती को नाना प्रकार के जीवो से आच्छादित करके रखे हुए हैं उनकी भी जिम्मेदारी है उनकी भी मजबूरी है एवं व रूद्र को ज्यादा देर तक भूमि पर नहीं रख सकते वह तंत्र शास्त्र को शिव गीता को अति दुर्लभ अध्यात्म को प्रकांड दीक्षा दानी को ज्यादा समय नहीं दे सकते क्योंकि पृथ्वी का संतुलन बिगड़ जाएगा जीव बिगड़ जाएगा मनुष्य बिगड़ जाएगा कुछ नवीन कुछ विचित्र कुछ प्रज्ञावान निर्मित हो गए तो जीव सृष्टि चलाना मुश्किल हो जाएगा एक मुखी जीवो के बीच पंचमुखी ज्ञान की क्या आवश्यकता अतः सृष्टि को कई कल्पों तक चलाने के लिए जीव को एक अनुशासित जैविक यंत्र के रूप में नियंत्रित रखने हेतु हमेशा से यही होता आया है। शिवत्व को रूद्रत्व को सत्य को ज्यादा काल नहीं दिया गया यही प्रजापति दक्ष ने किया एवं यही सभी अति विकसित महामानव के साथ हुआ उन से हट जाने का निवेदन किया गया हटा दिया गया क्योंकि पृथ्वी को आने वाले असंख्य वर्षों तक अभी चलाना है। दुनिया मूर्खों से चलती है दुनिया पशुओं से चलती है राज गुलामों पर किया जाता है गुलामों को ज्यादा स्वतंत्रता नहीं दी जाती ज्यादा ज्ञान चक्षु नहीं दिए जाते जायदा विद्वत नहीं दी जाती ज्यादा शक्ति नहीं दी जाती। रुद्राक्ष धारण करना तो संपूर्ण विद्रोह का प्रतीक है। अपने अंदर विकसित शिवत्व का घोष है और शिव के नाम से तो सभी थर्राते है परंतु रुद्राक्ष धारण तो सभी को करना पड़ता है तभी पूजते है लोग चरण पकड़ते हैं। तभी सब कुछ कटता है तभी श्रापों का निवारण होता है तभी तप सफल होते हैं तभी जप सफल होते हैं। रुद्राक्ष तो लक्ष्मी को भी धारण करना पड़ा विष्णु ने श्राप दिया था। लक्ष्मी ने घोर तपस्या की रुद्राक्ष की माला धारण की पुनः विष्णु को आना पड़ा विष्णु के श्राप का निवारण भी हुआ आखिरकार लक्ष्मी और विष्णु के पुनर्मिलन में रुद्राक्ष माला ही कारण बनी। विष्णु अवतार राम ने भी अपने आप को रुद्राक्ष से श्रृंगारीत कर लिया शेष अवतार लक्ष्मण ने भी अपने आप को श्रृंगारित कर लिया हनुमान तो रूद्रावतार है ही अतः रुद्राक्ष माला कैसे धारण नहीं करते। जटा में रुद्राक्ष कंठ में रुद्राक्ष विकसित बाहुओ पर रुद्राक्ष बंध यज्ञोपवित मैं रुद्राक्ष धारण करके ही राम और लक्ष्मण ने रावण से महायुद्ध किया। रूद्र बनकर ही रुद्रभक्त रावण का मर्दन किया।रावण के पूर्वज हिमालय की तराईयों से रुद्राक्ष के कल्पवृक्ष लंका ले आए थे। रावण के युग में ऑस्ट्रेलिया,जावा,सुमात्रा वर्तमान श्रीलंका, इंडोनेशिया आदि एक द्वीप के रूप में थे।वहां पर भी रुद्राक्ष पल्लवित हुए परंतु असुर राज का हाथ लग गया था इसलिए इंडोनेशिया लंका इत्यादि में पाए जाने वाले रुद्राक्ष असुर रुद्राक्ष कहलाते हैं। यह भद्दे होते हैं मानव मस्तिष्क की आकृति लिए हुए होते हैं उसने पवित्र और उच्च कोटि के नहीं होते जितने की देवभूमि पर पाए जाने वाले रुद्राक्ष होते हैं। एक नहीं कई कहावतें हैं जैसे कि लड़का शरीर से तो कमजोर है पर मुंह का जबरा है, लड़की शरीर से तो मजबूत है पर दिमाग से कमजोर है, छोरा खाने पीने में तो तेज है और शरीर से दुर्बल ही है, लड़की का मुख तो सुंदर है पर धड़ से नाटी है, शरीर तो सुंदर है पर नाक से ठीक नहीं है इत्यादि इत्यादि।ऊपर वर्णित कहावतें मानव समाज का परिदृश्य है शरीर तो दुबला पतला पर औरत मुंह बहुत चलाती है यह एक सामान्य दृश्य है। शरीर से तो लोग मोटे ताजे होते हैं पर दिमाग से गोबर भरा होता है। कुछ लोग मुंह से सुंदर होते हैं पर 20 किलो का पेट निकला होता है हाथ पांव फूले हुए होते हैं। कुल मिलाजुला कर शरीर असंतुलित विकसित बेढंगा प्रतीक होता है। यही 99% लोगों के जीवन की कहानी है कहीं भी संतुलन नहीं। जीवन शैली में ना चिंतन में ना शरीर में ना किसी अन्य क्षेत्र में। पढ़े लिखे तो हैं पर नौकरी नहीं है योग्य तो है पर धन नहीं है 30 वर्ष उम्र हो गई पर जीवन साथी नहीं असंतुलन क्षोभ उत्पन्न करता है जीवन के क्षणों को वो जीत करता है निराशा उत्पन्न करता है। पता चला सब कुछ ठीक है पर रंग कोयले के समान काला हो गया अब किस बात का सौंदर्य है ?शिव क्षेत्र महा संतुलन का क्षेत्र है एवं असंतुलन का नाश असौंन्दर्य का विनाश अलक्ष्मी का भस्मीकरण ही शिव कार्य है। महाकाल और महाकाली तो असंतुलित होते असौंदर्यवान होते ब्रह्मांड को भी भस्म करके रख देते हैं। क्रमशः
@Sanatan
350 views𝑱𝒂𝒈𝒅𝒊𝒔𝒉 𝒑𝒓𝒂𝒔𝒂𝒅 , 04:01
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