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भगवद्भाव 'प्रसाद' परिवार

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Neither You are You, nor I am I. We are (within) He. He is Life - to which You and I have to return what we have taken or got from Him
The discovery is of His Being - His Existence. You and I have no being of ours. We are His Beings. 🙏

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2017-03-25 03:43:01 श्रीरासपंचाध्यायी -श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन

शरद पूर्णिमा पर दिया गया एक प्रवचन

इसी परम त्याग की परम ऊँची जो समर्पण की लीला है उनमें आपस में ही। दूसरे और कोई नहीं है। यह खाली लोगों को दिखाने के लिये दो बने हैं लेकिन हैं एक ही।
कृष्ण अपने आप ही लीला करते हैं पर यह दिखलाया है इसमें कि कितना ऊँचे-से-ऊँचा त्याग होना चाहिये। जो भगवान की ओर जाना चाहता है उस साधक में।
यह उल्टी बात है कि लोग देखते हैं कि इसमें भोग ही भोग है पर इसमें तो केवल त्याग ही त्याग है। इसमें कहीं भोग है ही नहीं। यह तो इसी त्याग से ही आरम्भ होता है और त्याग में इसकी पराकाष्ठा है। जब सारा-का-सारा त्याग हो करके
श्रीकृष्ण के सुख में जाकर विलीन हो गया। उनका जीवन, उनकी क्रिया, उनके सारे काम, उनकी कुल-चेष्टायें श्रीकृष्ण में जाकर विलीन हो गयीं। इस प्रकार का था इनका त्यागमय जीवन।
तीन बात करनी होगी अगर किसी को गोपी बनना हो तब। साड़ी, लहँगा नहीं मँगाना है। हम सब गोपी बन सकते हैं।
1. अपने मन से जगत को निकाल देना।
2. भगवान को देने के लिये मन को तैयार कर देना।
3. किसी भी कारण से, किसी भी हेतु को लेकर कहीं पर भी अटकने का भावना न करना।
जहाँ तक हमारे मन में हमारे विषय भरे हैं, जहाँ तक विषयों को निकाल करके भी अगर हम ज्ञान-विज्ञान की ओर जाते हैं तो भगवान को अपना मन देना नहीं चाहते हैं। वहाँ भी भगवान मन नहीं लेते हैं। मन अमन हो जाता है, मन मर जाता है, मिट जाता है पर मन भगवान का नहीं होता है और तीसरी बात जो सबके लिये आवश्यक है- अटकना। यह अटकना गोपी में नहीं है। ये कहीं भी अटकी नहीं। न गहनों ने अटकाया, न कपड़ों ने अटकाया, न भोजन ने अटकाया, न घरवालों ने अटकाया। एक का अटकाया वह पहले पहुँच गयी।
अन्तर्गृहगताः काश्चिद् गोप्योऽलब्धविनिर्गमाः।
कृष्णं तद्भावनायुक्ता दध्युर्मीलितलोचनाः।।
61 views00:43
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2017-03-24 06:42:17 निश्चित समयपर चलने वाली गाड़ी के लिए जब पहले से सावधानी रहतीहै,फिर जिस मौत रुपी गाड़ी का कोई समय निश्चित नही है,उसके लिए तो हरदम सावधानी रहनी चाहिए। https://twitter.com/Ramsukhdasji/status/845074395634708480
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2017-03-24 06:42:17 Ram
For a fixed-time scheduled train also, attention is necessary from the very beginning.But the death symbolised train has no fixed time, for that, one should remain cautious always. https://t.co/IlqLVTM82X
48 views03:42
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2017-03-24 06:42:17 You make a home here,decorate it & hoard things.But,you are rushing through to death.Be prepared for the ultimate destination & make it good https://twitter.com/Ramsukhdasji/status/844708929498222592
47 views03:42
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2017-03-24 06:42:17 राम। मकान यहाँ बना रहे हो,सजावट यहाँ कर रहे हो,संग्रह यहाँ कर रहे हो,पर खुद मौत की तरफ भागे चले जा रहे हो। जहाँ जाना है पहले उसको ठीक करो। https://twitter.com/Ramsukhdasji/status/844709861711581185
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2017-03-24 06:42:17 राम
विचार करो, क्या ये दिन सदा ऐसे ही रहेंगे?
Ponder, would these days always remain the same forever?

https://twitter.com/Ramsukhdasji/status/844401119799468032
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2017-03-24 06:42:17
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2017-03-24 06:42:17

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2017-03-24 06:42:17 ।।राम।।
हे नाथ ! हे मेरे नाथ !!
मैं अपको भूलूँ नहीं !
वास्तव में देखा जाय तो मन की चंचलता दोषी नहीं है । मन बालकवत् है । जैसे भगवान् नित्य किशोर हैं, ऐसे मन भी नित्य बालक है । मन कभी बूढ़ा नहीं होता । बालक का सहज स्वभाव है चंचलता । जैसे बालक के पास चार गुण हैं, वैसे ही मन के पास भी चार गुण हैं । यथा-
१.चंचलता, २.प्रमथनशीलता,३.बलवत्ता, ४. दृढ़ता ।
घर में कोई बालक हो, उसकी चंचलता अपने माता-पिता तथा सम्पूर्ण परिवार को सुख देती है । यदि बालक चंचलता न करे, ख़ामोश हो जाय तो परिवार के सब लोग चिन्तित हो जाते हैं कि इसको क्या हो गया ? किन्तु यदि वह बालक अपना घर छोड़कर दूसरे के घर में जाकर चंचलता करे एवं उसके नाम पर शिकायत आ जाय तब माता-पिता तथा परिवार को दु:ख होता है ।
बालक अपने घर में चंचलता करता है तो सुख होता है, परन्तु दूसरों के घर में चंचलता करने से दु:ख होता है । वह बालक अपने घर में चंचलता न करने से दु:ख होता है, परन्तु दूसरों के घर में चंचलता न करने से सुख होता है । इससे यह सिद्ध होता है कि मन की चंचलता दोषी नहीं है । मन अपना घर छोड़कर दूसरों के घर में जाकर चंचलता करे तो वह दोषी है । यदि उसकी चंचलता दोषी होती तब अपने घर में की हुई चंचलता को दोषी मानना चाहिये, परन्तु दोष के बदले वह गुण मालुम पड़ता है ।
अपना घर क्या है ? जो वास्तव में हमारे हैं एवं हमारे साथ नित्य रहने वाले है, उनका घर ही अपना घर है । एकमात्र भगवान् ही अपने हैं, उनके पास रहना अर्थात् उनकी स्मृति बने रहना अपना घर है ।
'मेरे प्यारे का स्वभाव'
स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज
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2017-03-24 06:42:17 Ram Remember, this world is not Eternal. Only the dying live here, then why are you so smug and self-satisfied about it? https://twitter.com/Ramsukhdasji/status/843966966666678272
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