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इब्राहिम सम्राट था, अपने गुरु के पास गया और गुरु ने ऐसी मांग क | 🅞🅢🅗🅞

इब्राहिम सम्राट था, अपने गुरु के पास गया और गुरु ने ऐसी मांग की जो उसने कभी अपने किसी और शिष्य से न की थी।
इब्राहिम झुका तो गुरु ने कहा कि सच में झुक रहे हो?
इब्राहिम ने कहा कि नहीं झुकना होता तो आता ही नहीं। कोई मुझे लाया नहीं, अपने से आया हूं; झुक रहा हूं।
तो इब्राहिम से पूछा उसके गुरु ने, प्रमाण दे सकोगे?
इब्राहिम हाथ फैलाकर खड़ा हो गया और उसने कहा, आज्ञा दें।
और बड़ी अजीब आज्ञा दी गुरु ने।
गुरु ने कहा, कपड़े फेंक दो, नग्न हो जाओ।
इब्राहिम ने एक क्षण भी सोचा नहीं, पकड़े फेंक दिये और नग्न हो गया।
सम्राट था! और गुरु भी अदभुत था!
गुरु ने कहा, उठा लो वह जुता जो पड़ा है, निकल जाओ, बाजार में, मारते जाओ अपने सिर पर जूता, इकट्ठी होने दो भीड़, पूरे गांव का चक्कर लगा कर आ जाओ।
और इब्राहिम चला गया। अपनी ही राजधानी में, नंगा, सिर पर जूता मारता!
जो गुरु के पुराने शिष्य थे उन्होंने कहा—यह जरा ज्यादती है। ऐसा आपने हमसे तो कभी नहीं कहा था। और सम्राट के साथ तो थोड़ा सदय होना था, बिचारा आया झुकने को यही क्या कम था?
गुरु ने कहा मुझसे मत पूछो, इब्राहिम से ही पूछ लेना।
और इब्राहिम जब लौटा कोई घंटे भर अपनी ही राजधानी में जूता मारते हुए—हजारों की भीड़ इकट्ठी है, लते पागल चिल्ला रहे हैं, लोग पत्थर फेंक रहे हैं, लोग कह रहे हैं यह हो क्या गया, लोग मजाक कर रहे हैं, सारा गांव हंस रहा है, बच्चे,व् बूढ़े, स्त्रिया, सब इकट्ठे हो गये हैं, जुलूस चल रहा है उसके पीछे और इब्राहिम हंस रहा है, आनंदित हो रहा है और जूते मार रहा है और नग्न घूम रहा है—लौट आया।
जब इब्राहिम लौट कर आया तो वह आदमी ही दूसरा था।
गुरु ने अपने शिष्यों को कहा, इब्राहिम से पूछ लो।
इब्राहिम ने कहा कि इस एक घड़ी में जो जानने को मिल गया, वह जन्मों—जन्मों में नहीं जाना था। और जो मैं पाने आया था, वह मुझे मिल ही गया। मेरा अहंकार गिर गया। यही बाधा थी।
वह गुरु के चरणों में गिर पड़ा और उसने कहा—तुम्हारी कृपा! एक क्षण में मिटा दिया, एक घड़ी भर में मिटा दिया! मैं तो सोचता था वर्षों तपश्चर्या करनी पड़ेगी। सम्राट हूं, अकड़ा हुआ, अहंकार से भरा हुआ, अहंकार में ही जीया हूं, कैसे छूटेगा यह अहंकार—मैं तो यही सोचते—सोचते आया था, कैसे छूटेगा? और तुमने क्षणभर में छुड़ा दिया। और जरा—से उपाय से छुड़ा दिया।
अब तुम यह मत सोचना कि जूते मारने से कोई अहंकार छूट जाता है। नहीं तो एकांत में खड़ा होकर नग्न, तुम अपने को जूते मार लो, कि जब विधि काम करती है तो अपने कमरे में बंद हो गये, जूता लिया, नंगे हो गये और मार लिया जूता। घड़ी भर नहीं, दो घड़ी मारते रहे तो भी कुछ न होगा। न नग्न होने से कुछ होगा।
बात समझो।
भाव समझो।
यह तो सिर्फ उपाय था।
लेकिन इब्राहिम ने एक इशारा दे दिया कि अब जो कहोगे! यह बिलकुल पगलपन की बात है।
इब्राहिम को कहना चाहिए था कि यह क्या पागलपन करवाक्ष रहे हो?
नंगे होने से क्या होगा?
यही मित्र ने पूछा है—नंगे होने से क्या होगा?
गैरिक वस्त्र पहने से क्या होगा?
उन्होंने यह भी पूछा है कि क्या आप मुझे बिना गैरिक वस्त्रों के संन्यास नहीं दे सकते?
कुल तुम मुझसे कहोगे— ध्यान से क्या होगा?
क्या आप मुझे ध्यान के बिना संन्यास नहीं दे सकते?
प्रार्थना से क्या होगा?
क्या मैं बिना प्रार्थना के संन्यासी नहीं हो सकता?
यह तो सिर्फ इशारा है, यह तो इस बात का इशारा है कि आप जो भी कहेंगे, यह पगलपन तो यह पग़ालपन सही।
भक्त अपने को देने जाता है। इसलिए देने वाला शर्ते नहीं रख सकता।
भक्त समर्पित होता है, समर्पण बेशर्त ही हो सकता है।

ओशो।