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* गीताप्रेस के संस्थापक श्रीसेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दका का संक | श्रीसेठजी - Shri Sethji - Shri Jaydayal Goyandkaji

* गीताप्रेस के संस्थापक श्रीसेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दका का संक्षिप्त जीवन–परिचय*

*पूज्यजनोंकी श्रद्धा*

श्रीसेठजीके पिताजी पहले आर्यसमाजी थे। 'सत्यार्थप्रकाश पढ़ा करते थे। बादमें जब श्रीसेठजीकी सत्संगकी बातें सुनीं तथा इनका प्रभाव देखा तो उससे बहुत प्रभावित हुए तथा इनमें श्रद्धा हो गई। श्रीसेठजी बताया करते थे कि उनके जैसी श्रद्धा बहुत कम व्यक्तियोंकी थी। अपनी पत्नीसे कहते–– थे कि इसको पुत्र नहीं मानो, यह अपने घरमें अवतार है। सं. १९७१ में श्रीसेठजीसे प्रभावित होकर 'हरे राम' के मन्त्रका जप करने लगे। इनके सत्संग आदिके प्रचारसे इनकी श्रद्धा बहुत बढ़ गयी। एक बार बहुत बीमार हुए तो इनसे पूछा कि मेरा शरीर रहेगा या नहीं ? श्रीसेठजीने कहा––मुझे मालूम नहीं है। वे बोले––हनुमानको तो तुम बता देते हो, वह तुम्हारा मित्र है, मैं भी तो तुम्हारा कुछ लगता हूँ। उसी समय श्रीसेठजीके मनमें आया कि इस बीमारीमें शरीर नहीं जायगा।
मृत्युके एक महीने पूर्व फिर पूछा कि अब मेरा शरीर रहेगा या नहीं ? श्रीसेठजीने कहा––बतानेसे कोई लाभ नहीं है। यदि मैं कहूँगा मर जायेंगे तो हमलोगोंका सेवाभाव कम हो जायगा कि इनका शरीर तो जानेवाला है ही। यदि मैं कह दूँगा कि नहीं मरेंगे तो भी सेवाभाव कम हो जायगा कि शरीर जानेवाला तो है नहीं इसलिये बतानेमें लाभ नहीं है। जब उन्होंने नहीं बताया तो इनकी माँसे उन्होंने कहा कि तुम पूछो, मुझे तो बताता नहीं। इनकी माँने दो तीन बार इनसे अलगसे पूछा कि तुम्हारे पिताजी बार–बार पूछते हैं। फिर पिताजीने पूछा तो इन्होंने कह दिया कि आपका शरीर बचता नहीं लगता। मृत्युके एक दिन पहले रात्रिमें सोये नहीं, बोले कि सोते समय कहीं प्राण निकल न जाय ! इन्होंने कहा––आप सो जाइये। वे बोले––तुम गारण्टी लो तो मैं सो सकता हूँ। इनके कहनेपर सो गये। दूसरे दिन प्रातःकाल उठे तो इन्होंने कहा––आज आपका शरीर जा सकता है, आज नींद मत लीजियेगा, आज मेरी गारण्टी नहीं है। उनको जमीनपर सुला दिया था। उनको इतना आनन्द और मुग्धता थी कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता। मृत्युसे पहले श्रीसेठजीकी माँको बोले कि इसे अपना लड़का नहीं मानना, इसे अवतार मानना। उनके मामा श्रीनारमलजी बाजोरियाको बोले––इसे भानजा मत मानिये। इसने अपने घरमें अवतार लिया है। अपने सब लोगोंका उद्धार हो जायगा। पहले दिनसे ही अवर्णनीय प्रसन्नता थी।
श्रीघनश्यामदासजी जालान अपने पिताका कहना न मानते तो श्रीसेठजीके पिताजी उनसे कहते–––– तुम इसका संग करते हो, पर न इसकी बात मानते हो और न इसका अनुकरण करते हो, फिर संग करनेसे क्या लाभ हुआ ?

श्रीहीरालालजी गोयन्दका श्रीसेठजीके सत्संगमें निकटके साथी थे––बहुत श्रद्धा थी। उनसे भी उनके पिताजी, श्रीसूरजमलजीकी अधिक श्रद्धा थी। वे लोगोंको बुला–बुलाकर श्रीसेठजीके प्रभाव, गुणोंकी प्रशंसा करते तथा उन्हें सत्संगमें लगाते। श्रीसेठजी उनसे कहते–– आप मेरी प्रशंसा न किया करें। वे उत्तर देते–– और आपकी सब बात मान लेंगे, केवल यह एक बात नहीं मानेंगे। उनकी मृत्युके चार–पाँच घंटे पूर्व श्रीसेठजी उनके पास बैठे थे। भगवान् की बातें सुना रहे थे। उनको विष्णु भगवान् का चित्र दिखाया और बोले कि भगवान् के दर्शन करिये। वे बोले––यह तो चित्र है तब श्रीसेठजीने अपना चश्मा उतार कर उनको लगा दिया और बोले––अब देखिये। चश्मा लगनेपर बोले––अब दर्शन हो रहे हैं।
सं. १९७३ में श्रीझाबरमलजी सिंघानिया पूरुलियामें थे। उनको प्लेगकी बीमारी हो गई और डॉक्टरोंने जवाब दे दिया। श्रीसेठजी उस समय चूरू में थे, उनके पिताजीका स्वास्थ्य ठीक नहीं था। श्रीझाबरमलजीने श्रीसेठजीको बुलानेका तार भेज दिया कि तुमसे मिलनेकी इच्छा है, स्थिति चिंताजनक है। श्रीसेठजीने तार पिताजीको सुनाया। पिताजी कटाक्षसे बोले––जाना ही चाहिये, तुम्हारा मित्र है। श्रीसेठजीने कहा––मैं जानेकी बात नहीं कहता हूँ। पिताजी बोले––तब मुझे तार सुनानेकी जरूरत क्या थी ? सेठजी तो गये नहीं। बादमें श्रीझाबरमलजीने बताया कि तार देनेके बाद उन्होंने देखा कि यमदूत आये हैं। फिर देखा, श्रीसेठजी आ रहे हैं तथा उनके साथ श्रीभगवानं भी हैं। उनको देखते ही यमके दूत भाग गये। वे ठीक हो गये।
एक बार श्रीबद्रीदासजी गोयन्दकाने, जो श्रीसेठजीमें श्रद्धा रखते थे उनकी खड़ाऊँ धोकर उस जलको पी लिया। यह बात श्रीसेठजीके छोटे भाई श्रीहरि कृष्ण दासजीने देख ली। उन्होंने श्रीसेठजीसे इसकी शिकायत की। श्रीसेठजीने उनको बुलाकर कहा आपको ऐसी बातें नहीं करनी चाहिये। मैं जिस बातको बुरी बताता हूँ वह आप लोगोंको नहीं करनी चाहिये। यदि चोरी करनेसे धन मिलता हो तब भी चोरी नहीं करनी चाहिये। बादमें उनको बात समझमें आ गई।

पुस्तक
*श्रीभाईजी–– एक अलौकिक विभूति*
गीता वाटिका प्रकाशन