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* गीताप्रेस संस्थापक श्रीसेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाका संक्षिप | श्रीसेठजी - Shri Sethji - Shri Jaydayal Goyandkaji

* गीताप्रेस संस्थापक श्रीसेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाका संक्षिप्त जीवन–परिचय*

*अन्तरंग मित्रको गोपनीय पत्र*
पूज्य श्रीसेठजीने चूरूसे वि. सं. १९७२ के लगभग अपने अन्तरंग मित्र श्रीहनुमानदासजी गोयन्दकाको कलकत्ते एक परम गोपनीय पत्र लिखा। श्रीसेठजीकी लेखनीसे ऐसी स्पष्ट स्वीकारोक्ति मिलनी दुर्लभ है। पत्रका महत्वपूर्ण अंश उद्धरित किया जा रहा है––
"सिद्ध श्रीकलकत्ता बंदर भाई हनुमानसेती लिखी चूरूसे जयदयालका जयगोपाल परम आनन्द बचना। श्रीपरमेश्वरने हरदम याद राखियो।………
और आपको कसूर छे नहीं। अपणे कोई प्रेमकी बात हुई जेंको तुमा कुछ भी विचार करना नहीं। हमारी मरजी माफक सगली बात हुवे छे पीछे तुमारो दोष कुछ भी छे नहीं।
हमां तुमाने रेल मायं कई थी तुमारो भी हमारे मायं पूरो प्रेम नहीं है। जिको भाईजी पूरण प्रेम हुया पछे देरी लागे नहीं। पूरण प्रभाव जान्यो पीछे कुछ बाकी रेवे नहीं। संसारके हिसाबसे तुमारो बहुत प्रेम छे, सगलोंसे ज्यादा प्रेम है।
ईश्वर भावसे पूरण विश्वास हुवतो तो परमेसर तो सगली जगा मौजूद छे। दर्शन हुया पड्या छे फेरूँ चिन्ता रेवती नहीं। हमारे केनेमें पूरण विश्वास तथा हमारेपर पूरण विश्वास तथा प्रेमपूरण हुयाँ पीछे संसार मांय कुछ करतब बाकी रेवे नहीं। इस मांय जान लेना। कुछ पूछना हो तो चिट्ठी मौजूद राखियों। रूपकार पूछ लियो।


पुस्तक
*श्रीभाईजी–– एक अलौकिक विभूति*
गीता वाटिका प्रकाशन