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*गीताप्रेस संस्थापक श्रीसेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाका संक्षिप् | श्रीसेठजी - Shri Sethji - Shri Jaydayal Goyandkaji

*गीताप्रेस संस्थापक श्रीसेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाका संक्षिप्त जीवन–परिचय*
*मध्यस्थता*
पढ़े–लिखे न होनेपर भी श्रीसेठजीको समाजका अत्यधिक विश्वास प्राप्त था। पारिवारिक विभिन्न प्रकारके झगड़े सलटवानेके लिये लोग कोर्टमें न जाकर श्रीसेठजीको अपना पंच बना लेते थे। श्रीसेठजीने लाखों–लाखों रुपये कोर्टमें बर्बाद होनेसे बचाये तथा दोनों पक्षवालोंको सन्तुष्ट करके भेजा। उनका पर्याप्त समय इन कामोंमें लगता था। इतना ही नहीं, कई बार तो बड़े-बड़े व्यक्तियोंकी भी मध्यस्थता की। एक बार पं. मदनमोहनजी मालवीय हरिजनोंके लिये मन्त्र दीक्षा देनेका विशेष प्रचार कर रहे थे––सभा, पुस्तकें, व्याख्यान, लेख आदिके द्वारा। श्रीकरपात्रीजी महाराजने शास्त्र विरुद्ध होनेसे इसका विरोध किया। दोनोंमें शास्त्रार्थका दिन निश्चित हुआ। यह शास्त्रार्थ ऋषिकेशमें हुआ। उनमें दो मध्यस्थ चुने गये–– श्रीजयदयालजी गोयनका एवं श्रीगौरीशंकरजी गोयन्दका। यह शास्त्रार्थ कई दिनोंतक चला तथा उनमें दोनों व्यक्ति उपस्थित रहे। दोनों ही महानुभाव उच्च कोटिके विद्वान होनेके कारण प्रबल युक्तियों एवं प्रमाणोंसे अपना पक्ष ठीक सिद्ध कर रहे थे। अन्तमें गौरीशंकरजीने करपात्रीजी महाराजके पक्षमें अपना निर्णय दे दिया। परंतु सेठजीने कुछ इस प्रकारका निर्णय दिया–– 'देश और समाजकी परिस्थितिके अनुसार प्रोढ़ युक्तिओंके द्वारा मालवीयजीने अपना पक्ष सिद्ध कर दिया है। शास्त्रप्रमाणकी दृष्टिसे श्रीकरपात्रीजी महाराजका पक्ष ठीक है।' स्पष्ट निर्णय न देनेसे करपात्रीजी महाराज कुछ रूष्ट हो गये। करपात्रीजीने 'कल्याणमें' में लेख देना बन्द कर दिया। परंतु बादमें श्रीसेठजीने अपनी व्यवहार–कुशलतासे करपात्रीजीको प्रसन्न कर लिया। करपात्रीजीने स्वयं एक बार कहा कि गीताप्रेसवाले श्रीसेठजी और भाईजीने गोरक्षा—आंदोलनमें इतना सहयोग दिया है कि मेरा मन प्रसन्न हो गया और मतभेद रहनेपर भी मैंने विरोध करना छोड़ दिया।
कट्टर सनातन धर्मी होनेपर भी श्रीसेठजी सामाजिक परिस्थिति, राष्ट्रीय हित, मानवोचित सदस्यता एवं राष्ट्रीय नेताओं तथा महात्माओंके आदरभावसे कभी असावधान नहीं हुए।


पुस्तक
*श्रीभाईजी–– एक अलौकिक विभूति*
गीता वाटिका प्रकाशन