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*।।श्रीहरि:।।* जिसका भगवान में प्रेम, श्रद्धा और विश्वास | श्रीसेठजी - Shri Sethji - Shri Jaydayal Goyandkaji

*।।श्रीहरि:।।*

जिसका भगवान में प्रेम, श्रद्धा और विश्वास होगा वह भगवान पर निर्भर होगा । भगवान के नाम-रूप, गुण-प्रभाव, तत्त्व, रहस्य, महिमा तथा श्रद्धा की बातों का श्रवण, पुस्तकों में पढ़ना, मन से मनन करना आदि अभ्यास है । यह रमण है, इससे हृदय का अंधकार दूर होता है और भगवान के तत्त्व-रहस्य का विशेष ज्ञान होता है । श्रद्धा-प्रेम होता है । फिर मिलने की इच्छा होती है । फिर विशेष प्रभाव जाना जाता है और असली भजन-ध्यान होता है, जिससे भगवान प्रकट होकर दर्शन देते हैं ।

*― परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका सेठजी*

('मेरा अनुभव' पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर)

*नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!*