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एक बार हरिद्वारमें कुम्भका मेला था। उसमें गीताप्रेसने भी पुस्त | श्रीसेठजी - Shri Sethji - Shri Jaydayal Goyandkaji

एक बार हरिद्वारमें कुम्भका मेला था। उसमें गीताप्रेसने भी पुस्तकोंकी दुकान लगाई थी। मेलेमें आग लग जानेसे गीताप्रेसकी दुकान भी जलकर भस्म हो गई। दुकानका बीमा कराया हुआ था, अत: पूरे रुपये मिल गये। श्रीसेठजीके सामने बात आई तो उन्होंने पूरा हिसाब देखा और आज्ञा दी कि जो पुस्तकें बिक गई थी उनका रूपया बीमा कम्पनीको वापस कर दिया जाय। वैसा ही किया गया। वे तो कहा करते थे कि ईमानदारी और भगवान् की सेवाकी भावनासे व्यापार किया जाय तो उससे भी मुक्ति हो जाती है।

एक दिन मस्तीमें आकर बोले––स्वामीजी ! कई लोगोंको कोई न कोई शौक होता है। मेरी रुचिका विषय है––सत्संग, अन्यथा मैं इन सब कामोंमें क्यों पड़ता ? इसमें कुछ–न–कुछ खर्च भी करता रहता हूँ और समय भी लगाता हूँ।


पुस्तक
*श्रीभाईजी–– एक अलौकिक विभूति*
गीता वाटिका प्रकाशन