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बचपन की कुछ सुनहरी यादें जब मैं इस स्कूल में आयी थी तो मेरे | 💞 Status And Shayari

बचपन की कुछ सुनहरी यादें

जब मैं इस स्कूल में आयी थी तो मेरे लिए ये सिर्फ एक बिल्डिंग थी, जिसमें तमाम कमरे थे और उन तमाम कमरों में कई सारी खुली-बंद खिड़कियाँ । मुझे याद है जब भी मैं अपनी क्लास की खिड़की के बाहर देखती तो स्कूल के पास वाला रेत से भरा खाली मैदान सूरज की रोशनी में बिखरा हुआ नज़र आता, उदासी में डूबा हुआ नज़र आता जैसे मुझसे पूछ रहा हो, आजकल कहॉं रहती हो अक़िला ? कौन सी नई दुनिया में जाने लगी हो तुम ? पर उस वक्त मेरे पास उसके इन सवालों का कोई जवाब नहीं था क्योंकि मुझे खुद भी नहीं पता होता था कि क्यों मुझे रोज किताबों से भरा बस्ता देकर स्कूल भेज दिया जाता है ? कहते है, बचपन में जब बच्चों को उनके कुछ सवालों का जवाब ना मिले तो वो जवाबों को अपनी दिमागी नसों में खुद से ही उगा लेते है, बस ऐसे ही मैंने भी सोच लिया था कि स्कूल एक जगह है, जहॉं ब्लैक बोर्ड वो काली दीवार है जिस पर सफेद चॉक से लिखे जाते है कुछ लफ्ज़ ! बस उन लफ़्ज़ों की अपनी कॉपी में लिखना होता है और याद करना होता है । वक्त बीतने के साथ ही मेरी सोच और भी मजबूत होती गयी और मैं पढ़-लिखकर एक क्लास से दूसरी क्लास की सीढ़ियाँ चढ़ने लगी पर एक बार कुछ ऐसा हुआ कि फिर कभी मैंने क्लास के दौरान मैदान को नहीं देखा । मुझे याद है, हर रोज की तरह पढ़ने की बजाय मेरा ध्यान मैदान में हवा के झोंकों से उड़ती हुई रेत और तेज धूप की रोशनी पर था, तभी किसी नई मैडम ने मेरा नाम पुकारते हुए मुझे पूछा, ''अक़िला बाहर क्या दिखता है, तुम्हें ? मैं डॉंट के डर से घबराती हुई खड़ी हुई और बोली, मैदान, रेत, धूप तो वो बोली, धूप तो यहॉं भी है, रोशनी तो यहॉं भी है, उन्होंने मुझे ब्लैकबोर्ड की तरफ देखने को कहा तो मैं हँसते हुए सोचने लगी, ब्लैकबोर्ड में कैसे धूप हो सकती है, कैसे रोशनी हो सकती है ! उस वक्त उन्होंने मुझे मेरी जिंदगी का सबसे अहम सबक पढ़ाया । सबसे ज्यादा धूप तो यहीं है, ब्लैकबोर्ड पर लिखे जाने वाले शब्दों से लेकर किताबों में है । बस तब से मैदान के साथ साथ किताबों को भी मैंने अपना दोस्त बना लिया और अपने बड़े बड़े सपनों की छोटी सी दुनिया की नींव रखी ।

आज जब कई सालों बाद इस स्कूल से बाहर की दुनिया में जाना हो रहा है, तो खिड़की से दिखने वाला वो मैदान मुझे हरा-भरा सा मालूम पड़ता है, रेत की जगह घास ने ले ली है, और बच्चों की जगह माली के द्वारा लगाये हुए फूलों ने, मैं सोचती हूँ कि वो बच्चों को फूल क्यों नहीं तोड़ने देता ? भला, क्यों तोड़ने दे उसने इतनी मेहनत से उन्हें सींचा है जैसे, इस स्कूल की मैडम ने हम बच्चों को अपने प्यार और मेहनत से ।
~अ𝐐𝐈ला