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💞 Status And Shayari

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2022-08-29 22:29:17 Status And Shayari pinned «vocabulary बाराँ - Rains खुशनुमा फ़ज़ा - Gentle Breeze बाद-ए-सबा - wind कौस ओ कुज़ा - Rainbow दिलकश नज़ारों - Beautiful scenery बेइंतहा - Extremely परिन्दों की सदाओं - Songs by birds गुल नर्गिस, सुरजमखी, सुदबर्ग - Narcissus, sunflower, marigold शगुफ्ता बहार …»
19:29
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2022-08-29 20:27:17 एक सच्चा लेखक असल में एक सच्चा खोजी है ।

अगर मुझसे पूछोगे तो मैं कहूँगी कि मैंने आज तक ख़ुद का कुछ नहीं लिखा । एक लेखक असल में एक खोजी होता है, वो प्रकृति और स्वभाव के अलग अलग हिस्से को देखने की होड़ में लगा रहता है । एक सच्चा लेखक असल में एक सच्चा खोजी है ।

हम सब यहाँ उन्हीं चीज़ों को सजा रहें हैं जो पहले से ही सजी धजी तैयार किसी कोने में लुकीछिपी बैठी हुई हैं । यहाँ कोई किसी की कविता, नज़्म, ग़ज़ल नहीं चुराता । वह सिर्फ़ और सिर्फ़ शब्दों की सजावट चोरी करता है । कविताएँ चुराना तो वही बात हो गई जैसे कि चोरी की गई चीज़ों का फ़िर से चोरी हो जाना ।

कविता लिखना असल में एक नज़रिए को देखने या महसूस कर लेने भर का डंका पीटना है । तुम किसी लेखक के पसंदीदा कविता या कवि को जानकर उसकी खोज को नहीं समझ सकते इसलिए ये पूछना बंद करो कि फलां का पसन्दीदा कौन है ? अगर जानना ही है तो उससे उसकी पसंदीदा खोज के बारे में पूछो ।

कविता लिखने की कुंजी तुम्हें उन्हीं रास्तों में कहीं न कहीं मिलेगी ।
~अ𝐐𝐈ला अɴसाʀ𝗶

(ये मेरी आख़िरी पोस्ट है टेलिग्राम से अब अलविदा ले रही हूँ । आपसब लिखते रहें और सबको पढ़ते रहें। अपना ख़्याल रखें व स्वस्थ रहें । )
223 viewsअ𝗾𝗶ला अɴसाʀ𝗶, 17:27
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2022-08-28 23:52:32 बस का सफ़र

हर रोज़ सुबह घर से ऑफिस के लिए निकलना, बस पकड़ना, खिड़की वाली सीट, ताज़ी हवा, मोबाइल, और ईयरफ़ोन । ये एहसास बहुत ख़ास रहता है मेरे लिए, और शायद उन सभी के लिए, जो मेरे साथ हर रोज़ ज़िन्दगी के इस suffer में बस का सफ़र तय करते हैं ।

कितना भी व्यस्त रख लूं अपने आप को किसी काम में, लेकिन ये दिमाग़ में विचारों का संघर्ष कभी भी मुझे एक काम में चित्त जमाने नहीं देता । दुनिया की सारी चिंताएं छोड़, विचारों की जद्दोजहद से परे आज भी उस आख़री सीट पे बैठ खिड़की के बाहर देख गाने के बोल पर ध्यान न देते हुए केवल संगीत और साथ में ताज़ी हवाओं का मज़ा लेना चाह रही थी, तब ही सुनाई दिया, 'विविध भारती की अगली पेशकश- यूँ ही चला चल राही, कितनी हसीन है ये दुनिया...बस ! ये सुनते ही ना चाहते हुए भी दिमाग़ की सुई मुझे अनगिनत सवालों और ख़ुद ही उनके जवाबों पर अटका गई । क्या वाकई में हसीन है दुनिया ? और हाँ, तो किस लिये ? दिमाग़ में जवाब आया, कि ज़िन्दगी को गौर से देखा जाए तो उसकी ख़ुशी छोटी छोटी चीज़ों में ही छिपी हुई है ।

वो पल जिनमें हम वक़्त तो गुज़ारते हैं, मगर उन्हें कभी जीते नहीं । अब इस 'बस' के सफ़र को ही देख लीजिए, कहने को केवल रोज़मर्रा की भागदौड़ और परिवहन का साधन है, लेकिन गहराई से सोचा जाए तो भारत जैसे देश में कहीं ना कहीं ये हज़ारों, लाखों लोगों के सपनों का भी वाहक है । बस के ये चार पहिये बस को तो चला रहे हैं, लेकिन आप इनकार नहीं कर पाओगे अगर मैं कहूँ कि ये चार पहिये देश की आबादी के बहुत बड़े हिस्से की आजीविका भी चला रहे हैं । अपने सफ़र में धीरे धीरे आगे बढ़ती ये बस गरीबों को आगे बढ़ने की एक आकांक्षा से जोड़े रखती है और मध्यमवर्ग के लिए ये सफ़र एक ऐसे अवसर के रूप में साबित होता है, जिसके ज़रिये वे अपनी पहली उड़ान का सफ़र तय करते हैं ।

ये ही बस की आख़री सीट पर बैठे हज़ारों युवक- युवतियाँ अपने कैरियर के सपने देखते हैं, और दो प्रेमियों के प्रेम की शुरुआत भी यहीं से होती है । घर से अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरे करने के लिए निकल चूके लोग इस बस के सफ़र को किसी त्यौहार से कम नहीं मानते। अरे ! अपनी मुहब्बत को मंज़िल तक पहुंचाने के लिए भागे हुए युगल इस ही सफ़र से अपने जीवन का नया सफ़र तय करते हैं ।

एक बात तो तय है ! बहुत कुछ देता है, ये बस का सफ़र । खुशियाँ, जिज्ञासाएं, आतुरता, सपने, उम्मीदें, संघर्ष, विशेष भी बहुत कुछ ! और कहीं ना कहीं हमें सिखाता है कि ज़िन्दगी हर हाल में आगे बढ़ती है, विविध स्टेशनों पर अटकने के बावजूद, और ट्राफिक में फँसने के बावजूद ये दोबारा चलती है, चलती रहती है, मंज़िल से पहले क़भी भी रुकती नहीं ।

और काफ़ी वक़्त बीत गया इस सोच के साथ कि, ज़िन्दगी की छोटी छोटी बातों में ही उसकी ख़ुशी छिपी हुई है, और ज़िन्दगी के हर सफ़र को शौक से जिओ । इस सफ़र में आगे बढ़ते ही रहना है, कितनी भी रुकावटें आए, लेकिन मंज़िल तक ना पहुंचो तब तक रुकना नहीं है ।

इतने में मेरा स्टेशन आ गया। और मैं निकल गई इस नई सोच, इस नए जज़्बे के साथ, अपना सफ़र तय करने...!
~अ𝐐𝐈ला अɴसाʀ𝗶
306 viewsअ𝗾𝗶ला अɴसाʀ𝗶, 20:52
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2022-08-28 18:47:25 ग़मगीन कोई सब्ज़-ए-गुलिस्ताँ की जज़ा से,
किसी को इत्मिनान बारां-ए-हिज़्र की सज़ा से ।

इज़हार-ए-शादमानी कोई करे अदा अदा से,
कोई करे बयान-ए-ख़ामोशी अपनी सदा से ।

फ़ाक़ाकश कोई अपनी मुक़म्मल ग़िज़ा से,
मुतमईन कोई अपनी ख़स्ताहाल ख़िज़ाँ से ।
~अ𝐐𝐈ला अɴसाʀ𝗶

कुछ न होते हुए भी कोई पूरी तरह से मुतमईन है। किसीके पास सबकुछ है, फिर भी सुकूँ नहीं।
जीना इसी का नाम है, शायद!

ग़मगीन- Depressed
सब्ज़ ए गुलिस्तां- Greenery of garden (Happiness here)
जज़ा- Reward
इत्मिनान- Satisfaction
बारां ए हिज्र- Rain of saperation (Sorrow here)
इज़हार ए शादमानी- Expression of happiness
सदा- Voice
फ़ाक़ाकश- Starving, hungry
मुक़म्मल ग़िज़ा- Complete diet (Delicious food here)
मुतमईन- Satisfied
ख़स्ताहाल ख़िज़ाँ- Dilapidated autumn (Days of sorrow here)

Good Night, शब्बा ख़ैर, शुभरात्रि
283 viewsअ𝗾𝗶ला अɴसाʀ𝗶, 15:47
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2022-08-28 18:25:32 vocabulary

बाराँ - Rains
खुशनुमा फ़ज़ा - Gentle Breeze
बाद-ए-सबा - wind
कौस ओ कुज़ा - Rainbow
दिलकश नज़ारों - Beautiful scenery
बेइंतहा - Extremely
परिन्दों की सदाओं - Songs by birds
गुल नर्गिस, सुरजमखी, सुदबर्ग - Narcissus, sunflower, marigold
शगुफ्ता बहार - Bloomed autumn
आतिश ओ बर्क - Fire and lightning
शम्स ओ क़मर- Sun and moon
वक़्त ए फरागत - Timing of leisure
रूमानी तसव्वुर - Romantic imagination
फ़रोज़ा - Luminous
चराग - Lamps
लौ - Flame
ताबनाक - Bright
शम्मा - Candle
तशरीह ए मसाफत - Explanation of distance
जुस्तजू की कहकशाँ - Lots of search
245 viewsअ𝗾𝗶ला अɴसाʀ𝗶, 15:25
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2022-08-28 18:25:31 गर्मियों में बाराँ और खुशनुमा फ़ज़ाओं का क्या करूँ,
तुम जो नहीं, मौसम की बदलती अदाओं का क्या करूँ ।

बाद-ए-सबा, कौस-ओ-कुज़ा इन दिनों अच्छे बड़े लगते हैं,
तुम जो नहीं, इन दिलकश नज़ारों का क्या करूँ ।

चिड़िया, तितलियां, भँवरे इन दिनों बेइंतहा चहकते हैं,
तुम जो नहीं, इन परिन्दों की सदाओं का क्या करूँ ।

गुल नर्गिस, सूरजमुखी, सुदबर्ग इन दिनों ख़ूब खिलते हैं,
तुम जो नहीं, इन शगुफ्ता बहारों का क्या करूँ ।

आतिश-ओ-बर्क, शम्स-ओ-क़मर इन दिनों और जलते हैं,
तुम जो नहीं, इन चमकते सितारों का क्या करूँ ।

वक़्त-ए-फरागत में रूमानी तसव्वुर इन दिनों ख़ूब सजते हैं,
तुम जो नहीं, इन ख़्वाब-ओ-ख़्यालों का क्या करूँ ।

रौशनी फ़रोज़ा है चरागों की, इन दिनों लौ और ताबनाक है,
तुम जो नहीं, इन सुलगती शम्माओं का क्या करूँ ।

ज़मीन-ओ-फ़लक भी इन दिनों तशरीह-ए-मसाफत करते हैं,
तुम जो नहीं, इन जुस्तजू की कहकशाँओ का क्या करूँ।
~अ𝐐𝐈ला अɴसाʀ𝗶
237 viewsअ𝗾𝗶ला अɴसाʀ𝗶, 15:25
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2022-08-28 18:14:59 ख़ुद को किसी की अमानत समझ,
अपना ख़्याल रखना भी मोहब्बत है ।
~अ𝐐𝐈ला अɴसाʀ𝗶
229 viewsअ𝗾𝗶ला अɴसाʀ𝗶, 15:14
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2022-08-28 14:36:25 जब तलक उनकी दाद-ओ-तहसीन ना मिले,
हम किसी शे'अर को मुकम्मल भी तो नहीं कह सकते ।
~अ𝐐𝐈ला अɴसाʀ𝗶
258 viewsअ𝗾𝗶ला अɴसाʀ𝗶, 11:36
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2022-08-28 13:57:57 हर्फ़ दर हर्फ़ मिटाते चली गयी,
जो भी याद थी उसे जलाते चली गयी ।

तू है, तू था, तू है कि नही अब मालूम नहीं,
इसलिए तुम्हारी बज़्म से मैं रुसवा होते चली गयी ।

तू कहता था तू मेरी ज़िंदगी, हमनवां, हमराही है,
तुझ रक़ीब की इब्तेदा थी देख ना दरबदर होते चली गयी ।

अब तुही बता क्या गीला-शिकवा शिकायत करूँ,
तेरे साये में रहकर भी अक़िला मिसमार होते चली गयी ।
~अ𝐐𝐈ला अɴसाʀ𝗶

(मिसमार- तबाह, बर्बाद, गिरा देना)
253 viewsअ𝗾𝗶ला अɴसाʀ𝗶, 10:57
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2022-08-28 11:09:58 अक़्सर मैं ख़्यालों की दुनिया में एक नई दुनिया बनाती हूँ,
तूम भले हक़ीक़त में मेरे नहीं पर हुल्म में तुझे अपना बनाती हूँ ।
~अ𝐐𝐈ला अɴसाʀ𝗶

हुल्म- कल्पना, ख़्वाब-ओ-ख़याल
253 viewsअ𝗾𝗶ला अɴसाʀ𝗶, 08:09
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