हर्फ़ दर हर्फ़ मिटाते चली गयी, जो भी याद थी उसे जलाते चली गयी । | 💞 Status And Shayari
हर्फ़ दर हर्फ़ मिटाते चली गयी,
जो भी याद थी उसे जलाते चली गयी ।
तू है, तू था, तू है कि नही अब मालूम नहीं,
इसलिए तुम्हारी बज़्म से मैं रुसवा होते चली गयी ।
तू कहता था तू मेरी ज़िंदगी, हमनवां, हमराही है,
तुझ रक़ीब की इब्तेदा थी देख ना दरबदर होते चली गयी ।
अब तुही बता क्या गीला-शिकवा शिकायत करूँ,
तेरे साये में रहकर भी अक़िला मिसमार होते चली गयी ।
~अ𝐐𝐈ला अɴसाʀ𝗶
(मिसमार- तबाह, बर्बाद, गिरा देना)