2022-06-15 19:49:13
खौफ में गुजरते इस साल को अबतर कर दे,
गमों की धूप से महफूज अब हर सर कर दे ।
ज़ीक़ में डूबा था हर दिल था मातम पसरा,
दूर कर खौफ बुलंद हर मुकद्दर कर दे ।
हाथ छुड़ा के जा चुकी है खुशियां जिन आंगन से,
मासूम शोखी से भरा अल्हड़ उसमें बचपन भर दे ।
तेरी रहमत से ही मिलती है इस जहां में मोहब्बत,
अब मोहब्बत से हर एक दिल तू तरबतर कर दे ।
धूप तीखी है मंजिल दूर और दुश्वार रास्ते,
अपने दामन का साया सर मेरे रहबर कर दे ।
अधूरी ख्वाहिशों की इक इमारत बन चुकी है अक़िला,
मुकम्मल अब मेरी हर आरजू या ख़ुदा परवर कर दे ।
~अ𝐐𝐈ला
304 viewsअ𝐐𝐈ला अɴसाʀɪ, 16:49