रात की पेशानी पर भी कोई घाव है गहरा शायद, मेरी आंखों की तरह रीसता है वो भी सुबह होने तक । ~अ𝐐𝐈ला अɴसाʀ𝗶 205 viewsअ𝗾𝗶ला अɴसाʀ𝗶, 21:30