2021-09-03 05:18:39
प्रिय मालिक
पूज्य बाबूजी महाराज
दिव्य लोक से संदेश
शनिवार, 30 मार्च 2002 प्रातः 10:00 बजे
"हाँ, मेरी बिटिया, हमारी ओर मार्गदर्शित करने के लिये तुम ईश्वर को धन्यवाद कर सकती
हो। हमारा मार्ग एकमात्र मार्ग नहीं है, लेकिन यही तुम्हारा मार्ग है। तुम्हारे लिये इस जीवन में
ऐसा ही तय किया गया था। यहीं और अभी तुम वहीं हो जहाँ तुम्हें होना चाहिये। अपने
क्रम विकास की गति को बढ़ाने के लिये इंसान जिस पर अपनी सारी उम्मीदें लगा सकते
हैं, और जो इस जीवन के परे भी हमारा मार्गदर्शन करते रहते हैं, ऐसे जीवंत गुरु से मिल
पाना बड़े सौभाग्य की बात होती है। यह जानना ज़रूरी है कि किस तरह से आभार मानना
है; इंसानों को कई सारी कृपाएँ दी जाती हैं, फिर भी वे उन्हें नज़रअंदाज़ कर देते हैं या उन्हें
मामूली समझते हैं। कसौटियों को उनके सही मायनों में स्वीकार नहीं किया जाता; जो लोग
इन्हें अनुचित समझते हैं वे कई तरह से इसके बारे में शिकायत करते हैं, रोते-गिड़गिड़ाते हैं
और मानते हैं कि ईश्वर तब तक दयालु है जब तक वह खुशियाँ बरसाता जाता है। इंसान
जिस अवस्था तक पहुँचने की आकांक्षा करते हैं, उस धारणा का क्या ? समझदारी का वह
स्तर जो इंसान को इन सभी अवस्थाओं से गुज़रने और उन्हें समझने देता है, उस स्तर तक
पहुँचना कुछ हद तक हुए क्रम विकास का संकेत है। मानवजाति की मदद करने के लिये
इस पृथ्वी पर लौटकर आई विभूतियों से मार्गदर्शित होते हुए, इंसान को प्रबुद्ध किये जाने की
ज़रूरत होती है। ऐसी विभूतियों तक पहुँच पाना एक विशेष आशीर्वाद है।"
बाबूजी
44 viewsDeepanshu Singh, 02:18