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मगध साम्राज्य भाग 8 मौर्य वंश | RAJASTHAN GK WITH PKRAJ©

मगध साम्राज्य
भाग 8 मौर्य वंश
भाग 7 - https://t.me/rajasthangkwithpkraj/13142
अशोक के उत्तराधिकारी -
जालौक कश्मीर का शासक बना ,यह शैव अनुययी था
गांधार का शासक उसका पुत्र वीरसेन बना
अशोक के बाद कुणाल शासक बना यह अंधा था इसकी उपाधि 'धर्म विवर्धन ' थी
बौद्ध व जैन साहित्य सीधे सम्प्रति को अशोक का उत्तराधिकारी बताते है , सम्भवत: कुणाल अंधा था इसलिए सम्प्रति उसका सह्योगी रहा होगा
सम्प्रति जैन धर्म का अनुयायी व संरक्षक था आचार्य सुहस्तिन ने उसे जैन धर्म मे दीक्षित किया
सम्प्रति के बाद शालिशुक शासक बना , अशोक के समान इसे भी 'धम्म विजय'' करने वाला बताया गया । इसके समय 206ई. पू. मे यवन शासक एंटियोकस तृतीय का काबुल घाटी पर आक्रमण हुआ ।
मौर्य वंश का अंतिम शासक बृहद्रथ था , इसे हर्षचरित मे 'प्रज्ञा दुर्बल ' कहा गया है । इसकी हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने की ,यह अशोक का सांतवा उत्तराधिकारी था ।

मौर्य प्रशासन -
राज्य का सप्तांग सिद्धांत- भारत मे सर्वप्रथम अर्थशास्त्र मे राज्य को परिभाषित किया गया । इसमे राज्य का सप्तांग सिद्धांत दिया हुआ है जिसमे राज्य के सात अंग/प्रकृति बताइ गई है 1. स्वामी /राजा- शिरोभाग 2. अमात्य-नेत्र 3. जनपद (जनसम्पदा या निश्चित भुखण्ड)-पैर 4.दुर्ग- भुजा 5.कोश-सुख 6.दण्ड (न्याय व्यवस्था व सेना)- मस्तिष्क 7. मित्र (राज्य से बंधुत्व रखने वाली शक्ति)- कान ।
सबसे महत्वपुर्ण राजा व सबसे कम मह्त्वपुर्ण मित्र
केंदिय प्रशासन-
सम्राट- कोटिल्य ने राजा को यम व इंद्र का प्रतिनिधि कहा है । राजा सर्वोच्च होता था । अर्थशास्त्र मे पहली बार 'चक्रवर्ती ' शब्द का स्पष्ट प्रयोग हुआ । दिघ निकाय मे भी 'चक्रवर्ती सम्राट' कि संकल्पना मिलती है ।
- अतिमहत्वपुर्ण कार्यो हेतू 4-5 अत्यंत विश्वसनीय व्यक्तियो कि समित्ति (आधुनिक केबिनेट के समान)। मेगस्थनीज ने इसके लिए 'सुनेड्राई' शब्द कामंत्रिण प्रयोग किया है । ये राज्य प्रशासनिक व्यवस्था के सर्वोच्च पदाधिकारी थे । ये प्रथम श्रेणी के अमात्य थे ।
मंत्रिपरिषद - मंत्रिण से बडी होती थी , बडी मत्रिपरिषद को अर्तशास्त्र मे राजा के हितकारी बातया गया है । मेगस्थनीज ने इसके लिए 'सुमबोउलाई' शब्द का प्रयोग किया । इसके सद्स्य द्वितीय श्रेणी के अमात्य होते थे ।
उपधा परिक्षण- राजा द्वारा अमात्य वर्ग मेसे मंत्रियो का चुनाव उनके चरित्र कि भलि भांति जांच के बाद किया जाता था इस प्रक्रिया को 'उपधा परिक्षण' कहा जाता था
केंद्रिय अधिकारी तंत्र - तीर्थ - विभाग , प्रत्येक तीर्थ का एक मुखिया होता था जिसे तीर्थ /महामात्र/महामात्य कहा जाता था । कुल 18 तीर्थ थे
1 मंत्री / पुरोहित - प्रधानमंत्री तथा धर्माधिकारी इसे अग्रामात्य भी कहा जाता था ,2.समाहर्ता - राजस्व विभाग का प्रधान , 3. सन्निधाता - कोषाध्यक्ष , 4. सेनापति- युद्ध विभाग का प्रधान, 5. प्रदेष्टा - फौजदारी न्यायलय का न्यायाधिश, 6. युवराज -उत्तराधिकारी , 7. नायक- सेना का संचालक , 8. कर्मांतिक- उद्योग धंधो का प्रधान, 9. व्यावहारिक- दीवानी न्यायालय का न्यायाधिश 10. मंत्रिपरिषदाध्यक्ष - मत्रिपरिषद का अध्यक्ष , 11. दण्डपाल- सैन्य सामग्री का प्रबंध करनेवाला , 12. अंतपाल- सीमावर्ती दुर्गो व मार्गो का रक्षक, 13. दुर्गपाल- आंतरिक दुर्गो का रक्षक , 14 . नागरक - नगर का प्रमुख अधिकारी , 15.प्रशास्ता - प्रशस्ति/ अक्षपटल विभाग का प्रमुख ,16. दौवारिक- राजमहल कि देख रेख करने वाला ,17. अंतर्वशिक- सम्राट कि अंगरक्षक सेना का प्रधान,18.आटविक - वन विभाग का प्रमुख ।
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