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RAJASTHAN GK WITH PKRAJ©

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2021-12-10 12:25:15
#rahul_gandhi_go_back हो रहा है ट्रेंड रिट भर्ती परीक्षा में पद बढ़ोतरी को लेकर हो रहा विरोध
http://t.me/rajasthangkwithpkraj
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2021-12-10 12:24:09
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2021-12-10 12:24:05
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2021-12-10 10:24:18
REET NEWS
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2021-12-10 07:52:51 मेगस्थनीज ने नगर प्रशासक को एस्टोनोमोई कहा इस प्रकार कुल 30 एस्टोनोमोइ थेजो पाटलीपुत्र प्रशासन से जुडे थे।
न्याय व्यवस्था- धर्मस्थानीय न्यायलय - आधुनिक दीवानी न्यायलय कि तरह । इसके मामले वाक् पारुष्य कहलातेथे
कंटक्शोधक न्यायालय - आधुनिक फौजदारी अदालत कि तरह । इसके मामले दण्ड पारुष्य कहलाते थे
चोरी ,डकैती ,लुट-पाट से सम्बंधित मामले 'साहस 'कहलाते थे ।
सैन्य व्यवस्था - चंद्रगुप्त के पास 6 लाख पैदल , 30 हजार अश्वारोही, 9 हजार हाथी तथा 800 रथ युक्त सेना थी । सैनिको कि संख़्या समाज मे कृषको के बाद सबसे अधिक थी।
कौटिल्य ने सेना के चार अंग बताए है- पैदल (प्रमुख- पत्याध्यक्ष), अश्व( प्रमुख - अश्वाध्यक्ष), हस्ति ( प्रमुख- हस्तयाध्यक्ष),रथ(प्रमुख- रथाध्यक्ष)।
6 प्रकार के पैदल सैनिक- मौल बल (पैतृक /स्थाइ सेना), भृटक( भाडे के सैनिक), श्रेणी(श्रेणितो कि सेना), मित्र बल (मित्र राज्य कि सेना), अमित्र बल ( अमित्र राज्य कि सेना), अटवीबल (जंगली जातियो कि सेना)
मैगस्थनीज के अनुसार 5 सद्स्यो वाली 6 समितियो द्वारा सैन्य प्रशासन किया जाता था । प्रथम समिति- जल सेना , द्वितीया समिति - युद्ध सामग्री ,रसद, यातायात प्रबंध, तृतीय समिति- पैदल सेना, चौथी समिति- अश्व सेना, पांचवी समिति- गज सेना, छठि समिति- रथ सेना।
गुल्म - सैनिक छावनिया , गुल्मदेय -सैनिको का वेतन
जस्टिन ने चंद्रगुप्त कि सेना को 'डाकुओ का गिरोह' कहा
गुप्तचर व्यव्स्था - अर्थशास्त्र मे गुप्तचरो को गुढ पुरुष कहा है । प्रतिवेदक व पुलेषनी गुप्तचर नही थे फिर भी सदैव सुचना का संकल्न करते थे ।
संस्था- एक हि स्थान पर रहकर कार्य करने वाले इनके5 प्रकार थे । 1. कापटिक (विद्यार्थि के वेशमे) 2. उदास्थित(सन्यासी के वेश मे)3. गृहपतिक (गरिब किसान के वेश मे) 4. वैदेहिक(गरिब व्यापारि के रुप मे) 5.तापस(तपस्वी के रुप मे)।
संचारा - भ्रमणशील गुप्तचर इनके 4 प्रकार थे । 1. सत्री - अनाथ बालको को बाल्यावस्था मे इस कार्य केलिए प्रशिक्षित किया जाता था जो साधु या ज्योतिष के वेश मे रहते थे ,2. तीक्ष्ण- धन के लिए प्राणो कि परवाह न करने वाले , 3.सरद- अपने बंधु बांधवो से भी स्नेह न रखने वाले क्रुर व आलसी प्रकृति के ,4. परिव्राजिका - भुक्षुणी/ सन्यासनी के वेश मे स्त्री गुप्तचर ।
उभयवेतन - विदेशो मे नियुक्त गुप्तचर
मेगस्थनिज ने महिला अंगरक्षिकाओ को समारानुतोगिनी कहा।
राजदुत - निसृष्टार्थ- सर्वाधिकार सम्पन्न राजदुत
परिमितार्थ - सिमित अधिकारो व उद्देश्यो से सम्बंध रखने वाले राजदुत
शासन हर - राजाज्ञा ले जाने वाले राजदुत ।

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प्रकाश कुमार राजपुरोहित
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2021-12-10 07:52:51 अध्यक्ष - अर्थशास्त्र मे 26 अध्यक्षो का उल्लेख मिलता है ये मंत्रियो के अधिन विभिन विभागो के प्रमुख थे, ये तृतीया श्रेणी के अमात्य थे ।
1. कोषाध्यक्ष/लक्षणाध्यक्ष- मुद्रा /टकसाल / छापेखाना विभाग, 2 पण्याध्यक्ष- वाणिज्य विभाग ,3. कुप्याध्यक्ष- जंगल कि वस्तुओ के निर्माण हेतुअधिकारी,4.पौतवाध्यक्ष - माप -तौल , 5. शुल्काध्यक्ष -सीमा शुल्क/पथ कर, 6. सुत्राध्यक्ष -वस्त्र उत्पादन ,7. आयुधागाराध्यक्ष- अस्त्र शस्त्रो के रख रखाव से सम्बंधित ,8. सीताध्यक्ष - राजकिय कृषि विभाग, 9.सुराध्यक्ष- आबकारी विभाग, 10. सूनाध्यक्ष- बूचडखाना (अव्ध्य पशु पक्षियो क सरक्षक) , 11. आकराध्यक्ष- खान विभाग का प्रमुख, 12.विविताध्यक्ष- चारागाह, 13.नवाध्यक्ष- जहाजरानी विभाग, 14. गणिकाध्यक्ष-वेश्यायो का निरक्षक, 15. संस्थाध्यक्ष- व्यापार/ व्यापारि मार्गो का प्रमुख, 16. लवणाध्यक्ष -नमक अधिकारी, 17 . मुद्राध्यक्ष- पासपोर्ट अधिकारी, 18. कोष्ठगाराध्यक्ष-भंडार गृह, 19.स्वर्णाध्यक्ष- स्वर्न उत्पदन व शुद्धता का मानकिकरण 20. हस्तिअध्यक्ष- हाथियो कि देख रेख करने वाला (इसी प्रकारअश्वाध्यक्ष,गौध्यक्ष भी होते थे), 21. बंधनागाराध्यक्ष- कारागार (प्रशस्त्रि नामक अधिकारी भी जेलो कि देखभाल करता था), 22.देवताध्यक्ष -धार्मिक संस्था ,23. लोहध्यक्ष/अक्षशालाध्यक्ष-धातु विभाग, 24. पत्तनाध्यक्ष- बंदरगाह प्रमुख, 25. द्युत्तध्यक्ष- जुआअधिकारी, 26. मानाध्यक्ष - दुरी तथा समय संकेतको से सम्बंधित ।
अन्य-अक्षपटलाध्यक्ष- महालेखाकार (हिसाब किताब रखने वाला सबसे बडा अधिकारी ), महामात्रापसरण- गुप्तचर /खुफिय/ ससुचना विभाग का अधिकारी
प्रांतीय प्रशासन - चंद्रगुप्त मौर्य के समय 4 व अशोक के समय 5 प्रांत थे । उत्तरा पथ (राजधानी - तक्षशिला), दक्षिणापथ(राजधानी -सुवर्णगिरी/कनकगिरि/जोनगिरी) ,अवंति( राजधानी- उज्जैन), प्राच्य(राजधानी-पाटलीपुत्र), कलिंग(राजधानी-तोसाली)।
गवर्नर - तक्षशिला , तौसली व उज्जैन मे कुमार नियुक्त थे ,सुवर्णगिरी मे आर्यपुत्र नामक पधाधिकारी था, मध्यदेश सिधे सम्राट के अधिन था । प्रांतो केअधिन छोटे केद्र थे जिन्मे महामत्य शासन करते थे । चंद्रगुप्त मौर्य केसमय सुराष्ट्र का गवर्नर पुष्यगुप्त वैश्य तथा अशोक के समय यवन तुषाष्प था ।
चर- प्रांतीय नौकरशाही पर कडी निगरानी रखने वाला अधिकारी
मण्डल - प्रांतो को मण्डलो मे विभाजित किया गया था इसका प्रमुख प्रादेशिक/प्रदेष्टा कहलाता था यह समाहर्ता के प्रति उत्तरदायी था
आहार/विषय/जनपद/जिला- मण्डलो का विभाजन जिलो मे किया गया था इसका प्रधान आहारपति/विषयपति कहलाता था । मेगस्थनीज ने इसे एग्रोनोमोइ कहा जो राजमार्ग निर्माण का भी प्रमुख अधिकारी था ।
जिले के निचे इकाइया - स्थानीय - 800 ग्रामो का समुह (मुखिया- स्थानिक) , द्रोणमुख- 400 ग्रामो का समुह, खार्वटिक- 200ग्रामो का समुह , संग्रहण - 10 ग्रामो कासमुह ( मुखिया - गोप),ग्राम - प्रशासन कि सबसे छोटी ईकाई ।
गोप - लेखपाल के रुप मे भीकार्य करता था
प्रादेशिक/ प्रदेष्टा- स्थानिक तथा गोप केकार्यो किजांच करता था
युक्त - केंद्र व स्थानीय शासन के बीच सम्पर्क की कडी थे, यह राजुक के रुप मे सचिव केरुप के कार्य करताथा
ग्राम प्रशासन- मुखिया- ग्रामिक जो वेतनभोगी कर्मचारी नही था ग्रामवासियो द्वारा निर्चाचित होता था । अर्थशास्त्र मे ग्राम वृहद परिषद का उल्लेख भी मिलता है जो प्रशासन कासहयोग व न्याय का कार्य करती थी ।
अन्य अधिकारी -
राजुक - जनपद स्तर पर पुरस्कार व दण्ड का अधिकारी भी रखता था
महामात्र - एसे उच्चाधिकारी जो कुमारो / आर्यपुत्रो कि सहायता केलिए नियुक्त थे
प्रशासनिक क्रम ( बढते क्रममे) राजुक - प्रादेशिक- महामात्र
प्रतिवेदक - प्रजा कि गतिविधियो कि सुचना राजा कोदेते थे
पुलिषानी - गुप्तचर व्यवस्था के अंग थे
अंत महामात्र- सिमांतवर्ती क्षेत्रो का प्रभारी
स्त्री अध्यक्ष माहामात्र(इतिझक महामात्र)- अंत:पुर कि स्त्रियो का प्रभारी
ब्रजभुमि महामात्र- गौ कि चारागाह भुमि का प्रभारी
चोररज्जुक - राजस्व स्रोतो से सम्बंधित होने के साथ चोरी के अपराध पर नियंत्रण रखते थे
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नगर प्रशासन - 30 सदस्यो कि परिषद जो 5-5 सदस्यो कि 6 उप समितियो मे विभजित
प्रथम समिति - उद्योग व शिल्प ,द्वितीय समिति- विदेशियो किदेख रेख, तृतीय समिति- जन्म म्रत्यु पंजिकरण ( प्रतिवर्ष जनगणना कि जाती थी) , चौथी समिति-व्यापार - वाणिज्य , पांचवी समिति- उद्योग समिति थी जो बाजार मे बिकने वाली वस्तुओ मे मिलावट को रोकती थी, छठी समिति- बिक्री (1/10 इसकी चोरी करने वालो को म्रत्यु दण्ड दिया जाता था)व चुंगी कर वसुली।
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2021-12-10 07:52:51 मगध साम्राज्य
भाग 8 मौर्य वंश
भाग 7 - https://t.me/rajasthangkwithpkraj/13142
अशोक के उत्तराधिकारी -
जालौक कश्मीर का शासक बना ,यह शैव अनुययी था
गांधार का शासक उसका पुत्र वीरसेन बना
अशोक के बाद कुणाल शासक बना यह अंधा था इसकी उपाधि 'धर्म विवर्धन ' थी
बौद्ध व जैन साहित्य सीधे सम्प्रति को अशोक का उत्तराधिकारी बताते है , सम्भवत: कुणाल अंधा था इसलिए सम्प्रति उसका सह्योगी रहा होगा
सम्प्रति जैन धर्म का अनुयायी व संरक्षक था आचार्य सुहस्तिन ने उसे जैन धर्म मे दीक्षित किया
सम्प्रति के बाद शालिशुक शासक बना , अशोक के समान इसे भी 'धम्म विजय'' करने वाला बताया गया । इसके समय 206ई. पू. मे यवन शासक एंटियोकस तृतीय का काबुल घाटी पर आक्रमण हुआ ।
मौर्य वंश का अंतिम शासक बृहद्रथ था , इसे हर्षचरित मे 'प्रज्ञा दुर्बल ' कहा गया है । इसकी हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने की ,यह अशोक का सांतवा उत्तराधिकारी था ।

मौर्य प्रशासन -
राज्य का सप्तांग सिद्धांत- भारत मे सर्वप्रथम अर्थशास्त्र मे राज्य को परिभाषित किया गया । इसमे राज्य का सप्तांग सिद्धांत दिया हुआ है जिसमे राज्य के सात अंग/प्रकृति बताइ गई है 1. स्वामी /राजा- शिरोभाग 2. अमात्य-नेत्र 3. जनपद (जनसम्पदा या निश्चित भुखण्ड)-पैर 4.दुर्ग- भुजा 5.कोश-सुख 6.दण्ड (न्याय व्यवस्था व सेना)- मस्तिष्क 7. मित्र (राज्य से बंधुत्व रखने वाली शक्ति)- कान ।
सबसे महत्वपुर्ण राजा व सबसे कम मह्त्वपुर्ण मित्र
केंदिय प्रशासन-
सम्राट- कोटिल्य ने राजा को यम व इंद्र का प्रतिनिधि कहा है । राजा सर्वोच्च होता था । अर्थशास्त्र मे पहली बार 'चक्रवर्ती ' शब्द का स्पष्ट प्रयोग हुआ । दिघ निकाय मे भी 'चक्रवर्ती सम्राट' कि संकल्पना मिलती है ।
- अतिमहत्वपुर्ण कार्यो हेतू 4-5 अत्यंत विश्वसनीय व्यक्तियो कि समित्ति (आधुनिक केबिनेट के समान)। मेगस्थनीज ने इसके लिए 'सुनेड्राई' शब्द कामंत्रिण प्रयोग किया है । ये राज्य प्रशासनिक व्यवस्था के सर्वोच्च पदाधिकारी थे । ये प्रथम श्रेणी के अमात्य थे ।
मंत्रिपरिषद - मंत्रिण से बडी होती थी , बडी मत्रिपरिषद को अर्तशास्त्र मे राजा के हितकारी बातया गया है । मेगस्थनीज ने इसके लिए 'सुमबोउलाई' शब्द का प्रयोग किया । इसके सद्स्य द्वितीय श्रेणी के अमात्य होते थे ।
उपधा परिक्षण- राजा द्वारा अमात्य वर्ग मेसे मंत्रियो का चुनाव उनके चरित्र कि भलि भांति जांच के बाद किया जाता था इस प्रक्रिया को 'उपधा परिक्षण' कहा जाता था
केंद्रिय अधिकारी तंत्र - तीर्थ - विभाग , प्रत्येक तीर्थ का एक मुखिया होता था जिसे तीर्थ /महामात्र/महामात्य कहा जाता था । कुल 18 तीर्थ थे
1 मंत्री / पुरोहित - प्रधानमंत्री तथा धर्माधिकारी इसे अग्रामात्य भी कहा जाता था ,2.समाहर्ता - राजस्व विभाग का प्रधान , 3. सन्निधाता - कोषाध्यक्ष , 4. सेनापति- युद्ध विभाग का प्रधान, 5. प्रदेष्टा - फौजदारी न्यायलय का न्यायाधिश, 6. युवराज -उत्तराधिकारी , 7. नायक- सेना का संचालक , 8. कर्मांतिक- उद्योग धंधो का प्रधान, 9. व्यावहारिक- दीवानी न्यायालय का न्यायाधिश 10. मंत्रिपरिषदाध्यक्ष - मत्रिपरिषद का अध्यक्ष , 11. दण्डपाल- सैन्य सामग्री का प्रबंध करनेवाला , 12. अंतपाल- सीमावर्ती दुर्गो व मार्गो का रक्षक, 13. दुर्गपाल- आंतरिक दुर्गो का रक्षक , 14 . नागरक - नगर का प्रमुख अधिकारी , 15.प्रशास्ता - प्रशस्ति/ अक्षपटल विभाग का प्रमुख ,16. दौवारिक- राजमहल कि देख रेख करने वाला ,17. अंतर्वशिक- सम्राट कि अंगरक्षक सेना का प्रधान,18.आटविक - वन विभाग का प्रमुख ।
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2021-12-10 06:26:00 Best political notes

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