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अध्यक्ष - अर्थशास्त्र मे 26 अध्यक्षो का उल्लेख मिलता है ये मंत | RAJASTHAN GK WITH PKRAJ©

अध्यक्ष - अर्थशास्त्र मे 26 अध्यक्षो का उल्लेख मिलता है ये मंत्रियो के अधिन विभिन विभागो के प्रमुख थे, ये तृतीया श्रेणी के अमात्य थे ।
1. कोषाध्यक्ष/लक्षणाध्यक्ष- मुद्रा /टकसाल / छापेखाना विभाग, 2 पण्याध्यक्ष- वाणिज्य विभाग ,3. कुप्याध्यक्ष- जंगल कि वस्तुओ के निर्माण हेतुअधिकारी,4.पौतवाध्यक्ष - माप -तौल , 5. शुल्काध्यक्ष -सीमा शुल्क/पथ कर, 6. सुत्राध्यक्ष -वस्त्र उत्पादन ,7. आयुधागाराध्यक्ष- अस्त्र शस्त्रो के रख रखाव से सम्बंधित ,8. सीताध्यक्ष - राजकिय कृषि विभाग, 9.सुराध्यक्ष- आबकारी विभाग, 10. सूनाध्यक्ष- बूचडखाना (अव्ध्य पशु पक्षियो क सरक्षक) , 11. आकराध्यक्ष- खान विभाग का प्रमुख, 12.विविताध्यक्ष- चारागाह, 13.नवाध्यक्ष- जहाजरानी विभाग, 14. गणिकाध्यक्ष-वेश्यायो का निरक्षक, 15. संस्थाध्यक्ष- व्यापार/ व्यापारि मार्गो का प्रमुख, 16. लवणाध्यक्ष -नमक अधिकारी, 17 . मुद्राध्यक्ष- पासपोर्ट अधिकारी, 18. कोष्ठगाराध्यक्ष-भंडार गृह, 19.स्वर्णाध्यक्ष- स्वर्न उत्पदन व शुद्धता का मानकिकरण 20. हस्तिअध्यक्ष- हाथियो कि देख रेख करने वाला (इसी प्रकारअश्वाध्यक्ष,गौध्यक्ष भी होते थे), 21. बंधनागाराध्यक्ष- कारागार (प्रशस्त्रि नामक अधिकारी भी जेलो कि देखभाल करता था), 22.देवताध्यक्ष -धार्मिक संस्था ,23. लोहध्यक्ष/अक्षशालाध्यक्ष-धातु विभाग, 24. पत्तनाध्यक्ष- बंदरगाह प्रमुख, 25. द्युत्तध्यक्ष- जुआअधिकारी, 26. मानाध्यक्ष - दुरी तथा समय संकेतको से सम्बंधित ।
अन्य-अक्षपटलाध्यक्ष- महालेखाकार (हिसाब किताब रखने वाला सबसे बडा अधिकारी ), महामात्रापसरण- गुप्तचर /खुफिय/ ससुचना विभाग का अधिकारी
प्रांतीय प्रशासन - चंद्रगुप्त मौर्य के समय 4 व अशोक के समय 5 प्रांत थे । उत्तरा पथ (राजधानी - तक्षशिला), दक्षिणापथ(राजधानी -सुवर्णगिरी/कनकगिरि/जोनगिरी) ,अवंति( राजधानी- उज्जैन), प्राच्य(राजधानी-पाटलीपुत्र), कलिंग(राजधानी-तोसाली)।
गवर्नर - तक्षशिला , तौसली व उज्जैन मे कुमार नियुक्त थे ,सुवर्णगिरी मे आर्यपुत्र नामक पधाधिकारी था, मध्यदेश सिधे सम्राट के अधिन था । प्रांतो केअधिन छोटे केद्र थे जिन्मे महामत्य शासन करते थे । चंद्रगुप्त मौर्य केसमय सुराष्ट्र का गवर्नर पुष्यगुप्त वैश्य तथा अशोक के समय यवन तुषाष्प था ।
चर- प्रांतीय नौकरशाही पर कडी निगरानी रखने वाला अधिकारी
मण्डल - प्रांतो को मण्डलो मे विभाजित किया गया था इसका प्रमुख प्रादेशिक/प्रदेष्टा कहलाता था यह समाहर्ता के प्रति उत्तरदायी था
आहार/विषय/जनपद/जिला- मण्डलो का विभाजन जिलो मे किया गया था इसका प्रधान आहारपति/विषयपति कहलाता था । मेगस्थनीज ने इसे एग्रोनोमोइ कहा जो राजमार्ग निर्माण का भी प्रमुख अधिकारी था ।
जिले के निचे इकाइया - स्थानीय - 800 ग्रामो का समुह (मुखिया- स्थानिक) , द्रोणमुख- 400 ग्रामो का समुह, खार्वटिक- 200ग्रामो का समुह , संग्रहण - 10 ग्रामो कासमुह ( मुखिया - गोप),ग्राम - प्रशासन कि सबसे छोटी ईकाई ।
गोप - लेखपाल के रुप मे भीकार्य करता था
प्रादेशिक/ प्रदेष्टा- स्थानिक तथा गोप केकार्यो किजांच करता था
युक्त - केंद्र व स्थानीय शासन के बीच सम्पर्क की कडी थे, यह राजुक के रुप मे सचिव केरुप के कार्य करताथा
ग्राम प्रशासन- मुखिया- ग्रामिक जो वेतनभोगी कर्मचारी नही था ग्रामवासियो द्वारा निर्चाचित होता था । अर्थशास्त्र मे ग्राम वृहद परिषद का उल्लेख भी मिलता है जो प्रशासन कासहयोग व न्याय का कार्य करती थी ।
अन्य अधिकारी -
राजुक - जनपद स्तर पर पुरस्कार व दण्ड का अधिकारी भी रखता था
महामात्र - एसे उच्चाधिकारी जो कुमारो / आर्यपुत्रो कि सहायता केलिए नियुक्त थे
प्रशासनिक क्रम ( बढते क्रममे) राजुक - प्रादेशिक- महामात्र
प्रतिवेदक - प्रजा कि गतिविधियो कि सुचना राजा कोदेते थे
पुलिषानी - गुप्तचर व्यवस्था के अंग थे
अंत महामात्र- सिमांतवर्ती क्षेत्रो का प्रभारी
स्त्री अध्यक्ष माहामात्र(इतिझक महामात्र)- अंत:पुर कि स्त्रियो का प्रभारी
ब्रजभुमि महामात्र- गौ कि चारागाह भुमि का प्रभारी
चोररज्जुक - राजस्व स्रोतो से सम्बंधित होने के साथ चोरी के अपराध पर नियंत्रण रखते थे
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नगर प्रशासन - 30 सदस्यो कि परिषद जो 5-5 सदस्यो कि 6 उप समितियो मे विभजित
प्रथम समिति - उद्योग व शिल्प ,द्वितीय समिति- विदेशियो किदेख रेख, तृतीय समिति- जन्म म्रत्यु पंजिकरण ( प्रतिवर्ष जनगणना कि जाती थी) , चौथी समिति-व्यापार - वाणिज्य , पांचवी समिति- उद्योग समिति थी जो बाजार मे बिकने वाली वस्तुओ मे मिलावट को रोकती थी, छठी समिति- बिक्री (1/10 इसकी चोरी करने वालो को म्रत्यु दण्ड दिया जाता था)व चुंगी कर वसुली।