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*गीताप्रेस के संस्थापक श्रीसेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाका संक्ष | श्रीसेठजी - Shri Sethji - Shri Jaydayal Goyandkaji

*गीताप्रेस के संस्थापक श्रीसेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाका संक्षिप्त जीवन–परिचय*

*शारीरिक बल*

युवावस्थामें श्रीसेठजीमें शारीरिक बल भी असाधारण था। चारपाईकी रस्सीको मुँहसे पकड़कर चारपाईको चारों ओर घुमाया करते थे। दोनों हथेलियोंपर दो लड़कोंको खड़ा करके उन्हें उठा लेते थे। आसन , व्यायाम किया करते थे। कभी-कभी ललाट एवं गलेकी नाड़ीको तेज चला कर दिखाते थे। पैरोंमें पसीना लाकर भी दिखाते थे। लोगोंने हाथ लगाकर देखा, कभी शरीरको एकदम गर्म कर लेते, कभी एकदम ठंडा। कभी शरीरके नीचेका आधा भाग ठंडा कर लेते, ऊपरका आधा भाग गरम। कभी नेत्रोंसे आंसुओंकी अजस्त्रधारा बहाकर दिखाते। इन बातोंका रहस्य पूछा गया तो श्रीसेठजीने कहा–– इसमें क्रियाकी प्रधानता नहीं है, केवल संकल्पसे जैसा चाहूँ वैसा कर लेता हूँ।



पुस्तक
*श्रीभाईजी–– एक अलौकिक विभूति*
गीता वाटिका प्रकाशन