🔥 Burn Fat Fast. Discover How! 💪

*गीताप्रेस के संस्थापक श्रीसेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाका संक्ष | श्रीसेठजी - Shri Sethji - Shri Jaydayal Goyandkaji

*गीताप्रेस के संस्थापक श्रीसेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाका संक्षिप्त जीवन–परिचय*

*ध्यान लगवाना*
एक बार श्रीहनुमानदासजी गोयन्दका श्रीसेठजीसे मिलनेके लिये चक्रधरपुर गये। एक दिन उन्होंने कहा––लोग समाधि लगाते हैं, उसी तरह मेरी भी समाधि लगा दें। श्रीसेठजी बोले–– *समाधि दो प्रकारसे लगाई जाती है। एक तो प्राणायामके द्वारा योग पद्धतिसे, दूसरी भगवान् के सगुण स्वरूपका ध्यान करनेसे आनन्दमें विभोर होकर बाह्य–ज्ञान लुप्त होनेसे लग सकती है।* इस दूसरे प्रकारसे तुम्हारी समाधि लगानेकी चेष्टा करके मैं समाधि तो लगा सकता हूँ, पर समाधिको पुन: उतारनेकी क्रिया मैं नहीं जानता। यदि तुम्हारी समाधि लग गई और फिर नहीं उतरी तो लोग तुम्हें मरा हुआ समझकर शरीरको जला देंगे। अत: समाधिकी बात छोड़ दें। हनुमानदासजीने पूछा–– इस प्रकारकी समाधिमें स्थित मनुष्यको लोग जला दें तो उसकी क्या गति होगी ? श्रीसेठजीने कहा–– वैसे मनुष्यको भगवत्प्राप्ति हो जायगी, क्योंकि उसकी वृत्तियाँ भगवत्स्वरूपमें लीन रहती है। उस मनुष्यका तो लाभ ही है, क्योंकि उसका जीवन सफल हो गया। यह बात सुनकर उनकी उत्कंठा और बढ़ गयी। वे समाधि लगानेका आग्रह करने लगे। अधिक आग्रह देखकर श्रीसेठजीने स्वीकार कर लिया। जिस मकानमें वह रहते थे उसके समीप ही एक दूसरा टूटा हुआ मकान था। लोगोंकी धारणा थी कि उस मकानमें भूत रहता है। श्रीसेठजीने उसी मकानमें चलनेको कहा, क्योंकि उसमें किसीके आनेकी संभावना नहीं थी। दोनों व्यक्ति वहाँ जाकर थोड़ी-सी जगह साफ करके ओढ़नेकी चादर बिछाकर बैठ गये। श्रीसेठजी प्रभावसहित सगुण भगवान् के ध्यानकी बातें करने लगे। कुछ समय बीत गयापर उनका ध्यान नहीं लग रहा था। यह देखकर श्रीसेठजी अपने स्थानसे उठे और जहाँ स्वयं बैठे थे वहाँ उन्हें बिठा दिया और उनके स्थानपर स्वयं बैठ गये। पुन: ध्यानकी बातें आरम्भ करते ही उनको रोमांच होने लगा, नेत्रोंसे प्रेमाश्रु बह निकले तथा ध्यान होने लगा कुछ देर बाद समाधि जैसी स्थिति होनी आरम्भ हो गयी। श्रीसेठजीने कहा–– मेरी रायमें अब समाधिकी चेष्टा यहीं बन्द कर देनी चाहिये, क्योंकि लोग तुम्हें देखकर कदापि नहीं समझेंगे कि समाधि लगी हुई है। वे मरा हुआ मानकर जलानेकी व्यवस्था करेंगे। घरवालोंको बड़ा दु:ख होगा। लोग डरसे मेरे पास आना बन्द कर देंगे तथा उन्हें जो आध्यात्मिक यत्किंचित सहायता मिलती है, वे उस से वंचित रह जायँगे। ऐसे कार्यमें तुम निमित्त बनो, यह मैं नहीं चाहता। तुम्हारे कल्याणमें तो कोई संदेह है ही नहीं। आज हुआ तो क्या ? और कुछ दिन बाद हुआ तो क्या ? अत: मेरी बात मान लो। मैं वचन दे चुका हूँ, अत: तुम्हारी अनुमतिसे ही बन्द करना उचित है। वे उस प्रेममय रायकी अवहेलना नहीं कर सके। श्रीसेठजीने समाधि लगाने की चेष्टा बन्द कर दी। कुछ देर बाद सेठजी बोले–– वास्तवमें इस मकानमें एक मनुष्य मरकर प्रेत हो गया था। वह अबतक यहीं था। अभी हमलोगोंके बीच जो भगवान् की चर्चा हुई, उसे सुनकर उसने प्रेतयोनिसे छूटकर सद्गति प्राप्त कर ली। अतः हम लोगोंका परिश्रम तो सफल हो गया।


पुस्तक
*श्रीभाईजी–– एक अलौकिक विभूति*
गीता वाटिका प्रकाशन