*गीताप्रेस संस्थापक श्रीसेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाका संक्षिप् | श्रीसेठजी - Shri Sethji - Shri Jaydayal Goyandkaji
*गीताप्रेस संस्थापक श्रीसेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाका संक्षिप्त जीवन–परिचय*
*स्वास्थ्यके लिये अनुष्ठान*
'कल्याण'का प्रथम अंक निकलनेके बाद श्रीसेठजीका स्वास्थ्य विशेष खराब हो गया। ओषधोपचार जैसा होना चाहिये, वैसे हो रहा था पर उससे कोई विशेष लाभ प्रतीत नहीं हुआ। परिवारवालोंको चिन्ता थी ही, सत्संगी भाइयोंको भी चिन्ता थी। अन्य स्वजनोंको भी चिन्ता होने लगी। बीकानेरके पण्डित श्रीगणेशदत्तजी व्यास श्रीसेठजीके यज्ञोपवीत गुरु थे तथा उनका श्रीसेठजीपर बड़ा स्नेह था। इन्हें रूग्ण देखकर वे चिन्तित हो गये। व्यासजी स्वयं ज्योतिष एवं तंत्रशास्त्रके ज्ञाता थे। सेठजीकी जन्मपत्री देखकर वे इस निष्कर्षपर पहुँचे कि ग्रह शान्तिके बिना वे स्वस्थ नहीं होंगे। अत: इसके लिये उन्होंने श्रीसेठजीके परिवारवालोंको प्रेरणा दी। यद्यपि परिवारवालोंका श्रीव्यासजीपर बड़ा विश्वास था, पर किसीने भी अनुष्ठानादिके लिये प्रोत्साहन नहीं दिया। अर्थका कोई संकोच नहीं था। रुपये चाहे जितने व्यय किये जा सकते थे, पर बात अड़ रही थी सैद्धान्तिक आदर्शको लेकर। श्रीसेठजीके सिद्धान्तमें निष्कामता कूट-कूटकर भरी थी। वे तो उपासनाके लिये उपासनाका सिद्धान्त मानते थे। नश्वर शरीरके लिये प्रभुकी उपासना वे उचित नहीं मानते थे, न कभी प्रोत्साहन देते थे, फिर ग्रहोंकी उपासनाके पक्षपाती होनेका प्रश्न ही नहीं था। परिवारवालोंमें किसीकी हिम्मत नहीं पड़ी कि प्रत्यक्ष या छिपकर व्यासजीको प्रोत्साहन दें। समर्थन न पाकर व्यासजी कुछ निराश हो गये, क्योंकि अनुष्ठान अर्थसाध्य था। उनके पास उतने रुपए थे नहीं और परिवारमें किसीने स्वीकार नहीं किया। साथ ही वे श्रीसेठजीको स्वस्थ देखना चाहते थे और अपनी समझसे सर्वोत्तम उपाय करना चाहते थे। अचानक उन्हें भाईजीकी याद आई। उन्होंने सारा विवरण लिखकर भाईजीको भेजा कि अनुष्ठान तो मैं स्वयं कर दूँगा, उसका खर्च वहन तुम कर लो। पत्र पाते ही भाईजीने चुपचाप बिना किसीको बताये व्यासजीके बताये अनुसार सारी अर्थ–व्यवस्था कर दी। अनुष्ठान पूर्ण हो गया। सचमुच ही अनुष्ठान पूर्ण होते ही श्रीसेठजी पूर्ण स्वस्थ हो गये।
*अग्रवाल महासभाको परामर्श*
मारवाड़ी अग्रवाल महासभामें दो दल हो गये थे – एक दल विधवा-विवाह आदिका समर्थक था, दूसरा दल इस आर्य–संस्कृतिका घातक मानकर विरोध करता था। वार्षिक अधिवेशन कलकत्तामें चैत्र शुक्ल सं.१९८४ में होनेवाला था। दूसरे दलका श्रीसेठजीके पास तार आया कि आपलोग महासभाको अपना सहयोग न दें तथा अधिवेशनमें उपस्थित तक न हो। श्रीसेठजीने भाईजीको बम्बई तार दिया कि यदि काममें विशेष हर्ज न हो, माँजी स्वस्थ हों तथा वे आज्ञा दें तो महासभाके समय पहुँचना चाहिये। उसी दिन उन्होंने दोपहर बाँकुड़ाके लिये प्रस्थान किया। श्रीसेठजीने भाईजी, अनुज श्रीहरिकृष्णदास एवं हनुमानदासजी गोयन्दका आदिसे परामर्श किया। अन्तमें कलकत्ते जानेका विचार तय हुआ। महासभामें सम्मिलित होनेवालोंके प्रति बहुत विरोध-प्रदर्शन किया जा रहा था। अतः ये सभी लोग शान्ति रक्षाकी दृष्टिसे हावड़ा स्टेशनसे पहले ही राजारामतल्ला स्टेशनपर उतर पड़े। सत्संगी भाइयोंको पहले ही सूचना मिल चुकी थी, अतः दस-पंद्रह व्यक्ति राजारामतल्ला स्टेशनपर आ गये थे। वहाँसे मोटरमें बैठकर गोविन्द-भवन चले गये। दोनों दलोंको समझानेके लिये भाईजीको भेजा गया। भाईजीने शान्ति बनाये रखनेकी पूरी चेष्टाकी तथा अधिवेशन शान्तिसे सम्पन्न हो गया। श्रीसेठजीका अधिवेशनमें सम्मिलित होनेका पूर्ण विचार था, पर सभापतिके भाषणमें विधवा–विवाहका समर्थन देखकर विचार बदल गया।
पुस्तक
*श्रीभाईजी–– एक अलौकिक विभूति*
गीता वाटिका प्रकाशन