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*गीताप्रेस संस्थापक श्रीसेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाका संक्षिप् | श्रीसेठजी - Shri Sethji - Shri Jaydayal Goyandkaji

*गीताप्रेस संस्थापक श्रीसेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाका संक्षिप्त जीवन–परिचय*

*स्वर्गाश्रममें सत्संग–सत्र*
उत्तराखण्ड हमारे देशका शताब्दियोंसे साधना–स्थल रहा है। श्रीसेठजी वैसे तो स्थान–स्थानपर भ्रमण करके सत्संग कराया ही करते थे, पर उत्तराखण्डकी पवित्र भूमि ऋषिकेशमें तो श्रीसेठजीने एक सत्संग सत्र ही खोल दिया था। यह क्रम सं. १९७८-७९ के लगभग प्रारम्भ होकर अभीतक निर्बाध चल रहा था। प्रतिवर्ष श्रीसेठजी चैत्रसे आषाढ़तक प्राय: यहीं रहते एवं सत्संगियोंका एक दल बड़ी ही पवित्र श्रद्धाके साथ एकत्रित होकर सुरसरिकी पावन कलकल धारासे सुसज्जित पुलिनपर भगवद्–रसका आस्वादन करता। कुछ दिन बाद यही आयोजन गंगाके दूसरे तटपर, कुमार जिसे स्वर्गआश्रम कहते हैं, आयोजित होने लगा। उस समय वहाँ सघन जंगल था, रहनेके लिये मात्र कुछ कुटियाएँ थी। गंगातटपर विशाल वटवृक्षकी छायामें भगवद्–रसका प्रवाह बहता रहता। धीरे–धीरे सत्संगमें आनेवालोंकी संख्या बढ़ने लगी। उनकी सुविधाके लिये श्रीसेठजीकी प्रेरणा एवं प्रयत्नसे यहीं गंगातटपर ‘गीता–भवन’ नामक एक विशाल भवनका निर्माण सत्संगमें आने वालोंके प्रवास निवास हेतु हुआ। सत्संगके लिये एक बड़े हॉल का भी निर्माण हुआ एवं स्नानकी सुविधाके लिये विशाल घाट भी बने। सत्संगके समय भोजनालयकी भी व्यवस्थाकी जाती थी।
सत्संग प्रवचन का क्रम प्रातः चार–साढ़े चार बजे प्रारम्भ होकर रात्रिके दस–साढ़े दस बजे तक चलता रहता। बीचमें थोड़ा समय भोजन तथा अपने व्यक्तिगत साधना–भजनके लिये रहता। पाँच–छ: समय तो श्रीसेठजी स्वयं प्रवचन देते तथा उनकी आग्रहसे भाईजी, स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज, स्वामी श्रीशरणानन्दजी महाराज आदि अन्य संत भी पधारते एवं प्रवचन देते। प्रवचनके अतिरिक्त श्रीसेठजी आए हुए साधक–साधिकाओं की समस्याओंके समाधान भी उन्हें एकान्तमें समय देकर करते थे।

पुस्तक
*श्रीभाईजी–– एक अलौकिक विभूति*
गीता वाटिका प्रकाशन