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*गीताप्रेस संस्थापक श्रीसेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाका संक्षिप् | श्रीसेठजी - Shri Sethji - Shri Jaydayal Goyandkaji

*गीताप्रेस संस्थापक श्रीसेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाका संक्षिप्त जीवन–परिचय*
*दुख मिटानेकी युक्ति*

जिन दिनों 'गीता–तत्त्व–विवेचनी' टीका बाँकुड़ामें लिखी जा रही थी, उस समय भाईजी, रामसुखदासजी महाराज, बाबा चक्रधरजी महाराज, पं. शान्तनुबिहारजी द्विवेदी आदि विद्वान वहींपर थे। उन्हीं दिनों मोहनलालजीके छोटे बच्चेका शरीर शान्त हो गया। मोहनलालजी श्रीसेठजीके छोटे भाई तो थे ही, श्रीसेठजीके कोई सन्तान न होनेसे उन्हींको दत्तक पुत्रके रूपमें स्वीकार कर लिया था। बच्चेको लेकर सब श्मशान गये। लौटनेपर देखा कि श्रीसेठजी अत्यन्त व्याकुल है। सब लोग उनकी सेवामें लग गये। समझाने लगे––आप इतने दुःखी हो जायँगे तो लोग क्या कहेंगे ? आप इतने भगवद्भक्त हैं, लोग कहेंगे कि जब इनका दु:ख नहीं मिटा तो भगवान् के मार्गपर चलनेसे हमारा दुःख क्या मिटेगा ? श्रीसेठजीने कहा––घर—बाहरका कोई भी व्यक्ति मेरे सामने दुःखी होकर आयेगा तो मैं फिर दुःखी हो जाऊँगा। इसलिये तुम लोग यह प्रतिज्ञा करो कि कोई दु:खी नहीं होगा तो मैं व्याकुल नहीं रहूँगा। ऐसा ही किया गया और सब ठीक हो गया। श्रीसेठजी सर्वथा सामान्य हो गये।
दूसरे दिन एकान्तमें किसीने श्रीसेठजीसे पूछा––क्या कल सचमुच आपको इतना दु:ख हुआ। श्रीसेठजी बोले–– नहीं, मैंने सोच–विचारकर दु:खी होनेका अभिनय किया था। यदि मैं व्याकुल न होता तो घरके सब लोग रोते–पीटते और मैं उन्हें समझाते–समझाते थक जाता। जब मैं दुखी हो गया तो सब लोग समझदार हो गये तथा मुझे समझाने लगे। अकेले मेरे दु:खी होनेसे सबका दु:ख मिट गया।
लोगोंका दु:ख मिटानेकी भी एक कला होती है, जो किसी–किसी महापुरुषको आती है।


पुस्तक
*श्रीभाईजी–– एक अलौकिक विभूति*
गीता वाटिका प्रकाशन