2022-05-13 11:05:58
महामृत्युंजय साधना (२)
---------------------जिस मानव जाति ने महामृत्युञ्जय बल को आत्मसात किया वे सर्वश्रेष्ठ कहलाये हैं। जब मनुष्य ने सर्वप्रथम सुदूर अंतरिक्ष में यात्रा सम्पन्न करने ने की ठानी तो उसे सैकड़ों वर्ष अनुसंधान करने पड़े। पता नहीं कितने अंतरिक्ष यान या राकेट उड़ने से पूर्व ही फट गये। कितने मनुष्य और पशु यात्रा पथ में ही मारे गये, कई पीढ़ियों ने सामूहिक रूप से अनुसंधान किया तब कहीं जाकर मानव जगत ने चन्द्रमा पर साक्षात रूप से पैर रखने का सौभाग्य प्राप्त किया। महामृत्युञ्जय साधना को समझने के लिए आपको यात्रा को समझना होगा। चन्द्रमा पर पहुँचना यात्रा का प्रथम चरण है और पुनः अंतरिक्ष यात्री का पृथ्वी पर वापस लौटना दूसरा चरण है। इन दोनों चरणों के बीच अनेकों उपचरण हैं, अनेकों विषम परिस्थितियाँ में हैं, समस्याऐं है, अवरोध है इत्यादि इत्यादि कहने का तात्पर्य है कि प्रतिक्षण यात्रा के खण्डित होने का भय है। यात्रा एक चुनौती है। जीवन भी एक चुनौती है इसीलिए महामृत्युञ्जय बल यात्रा को निर्विघ्न समाप्त करने के लिए अति आवश्यक है।
साधक का तात्पर्य मात्र आध्यात्मिक साधक से ही नहीं लेना चाहिए। प्रत्येक अनुसंधान, प्रत्येक खोज, सभी कुछ साधकों की ही देन है। इनके पीछे भी निश्चित ही आध्यात्मिक बल है। साधक का सीधा तात्पर्य कर्मशील व्यक्ति से है। साधक भगवान श्री कृष्ण के अनुसार कर्मयोगी ही होते हैं। निखट्टु, कर्महीन एवं शेखचिल्ली के समान सोच वाले व्यक्ति साधक कदापि नहीं हो सकते चाहे वह आध्यात्मिक अनुसंधान हो या भौतिक अनुसंधान, साधना का पथ कर्मशीलता मांगता है। एकाग्रता मांगता है। असफलताओ अवरोधों एवं कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करना हो महामृत्युञ्जय साधना है। निरंतरता के लिए अथक कर्म करने पड़ते हैं। इस संसार में जीवन को सुलभ बनाने के लिए की गई प्रत्येक खोज, शरीर को रोग मुक्त करने के लिए किया गया प्रत्येक अनुसंधान, चिकित्सा जगत का चर्मोत्कर्ष पर पहुँचना इत्यादि महामृत्युञ्जय साधना के अंतर्गत ही आता है। जिस भी क्रिया या कर्म से जीवन का बचाव होता है, जीवन की अवधि बढ़ती है वह महामृत्युञ्जय साधना का ही प्रतीक है।
महामृत्युञ्जय भगवान शिव का वह दिव्य बल है जो कि जीव को मृत्यु के मुख से प्रतिक्षण खींचता है। यह बल समय, काल एवं व्यक्ति अनुसार विभिन्न स्वरूपों में प्रकट होता है। आपके जीवन में ऐसे मनुष्य भी आ सकते हैं जो कि तोड़- तोड़कर आपको खा जायेंगे। आपकी ऊर्जा नष्ट कर देंगे। आपको धोखा देंगे, आपके साथ छल करेंगे, आपको भारी नुकसान पहुँचायेंगे। आपको कहीं का नहीं छोड़ेंगे। इसे कहते हैं आस्तीन में सांप पालना। भगवान शिव के मूर्ति रूपी विग्रह में इसीलिए सर्प भी शांत अवस्था में बैठे दिखाई पड़ते हैं। वे अधिष्ठाता हैं भूत-प्रेत, बेताल एवं अन्य जीवन को क्षति पहुँचाने वाली योनियों के। शिव ही इन सब नकारात्मक शक्तियों को नियंत्रित कर सकते हैं। अतः उनकी कृपा प्राप्ति के लिए प्रतिदिन महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप कीजिए।
प्रत्येक मनुष्य एक निश्चित ऊर्जा का स्वामी है। उसके पास ऊर्जा का एक निश्चित भण्डार है। ऐसी स्थिति में ऊर्जा का क्षय रोकना नितांत आवश्यक है। मनुष्य मनुष्य की ऊर्जा खा जाता है। जब तक ऊर्जा होती है चाहे वह किसी भी स्वरूप में हो ऊर्जा का शोषण करने वाले आपके पास मंडराते ही रहेंगे। जैसे ही ऊर्जा क्षीण होगी आप सब तरफ से त्याग दिये जायेंगे। अतः आपको ऊर्जा का अनुसंधान करना होगा। प्रतिक्षण आपको अपने शरीर में मौजूद दिव्य ऊर्जा केन्द्रों को खोजना होगा। संजीवनी विद्या समझनी होगी। पुनः मस्तिष्क को चैतन्य करने के विधान ढूंढने होंगे। ब्रह्माण्ड से अक्षय ऊर्जा प्राप्त करनी होगी। यह सब कलायें महामृत्युञ्जय साधना के अंतर्गत ही आती हैं। जिस प्रकार बहती हुई एक नदी अनेकों गुप्त स्त्रोतों से जल प्राप्त करती रहती है, वर्षा से भी जल प्राप्त करती रहती है, स्थान अनुसार स्वरूप परिवर्तन करती रहती है, कहीं पर भूमिगत हो जाती है, कहीं पर तीव्र हो जाती है तो कहीं गुप्त रूप से बहती है इत्यादि इत्यादि परन्तु यात्रा अविरल जारी रहती है। यही संजीवनी विद्या है। प्रतिक्षण पुनः जीवन प्राप्त करने की कला । मृत्यु को प्रतिक्षण भगाने की कला । ऐसा भी सम्भव है जब आपमें सक्रियता, चेतना का स्तर अत्यंत ही उच्च हो ।
आपका शरीर पंचभूतों से निर्मित हो । इन पंचभूतों की आयु और संतुलन आपके जीवन का निर्धारण करेंगी। पंचभूत अगर विकार ग्रस्त होते हैं तो जीवन भी विकार ग्रस्त हो जायेगा । वायु प्रदूषित होगी तो श्वास भी प्रदूषित हो जायेगी । श्वास प्रदूषित होगी तो रक्त प्रदूषित हो जायेगा। इसी प्रकार प्रदूषित जल का सेवन शरीर को प्रदूषित कर देता है। संजीवनी विद्या के अंतर्गत विष का निष्कासन, मल का निष्कासन जीवन के प्रत्येक तल पर आवश्यक है। .
(क्रमशः)
@Sanatan
588 views𝑺𝒂𝒕𝒚𝒂𝒎 𝒏𝒊𝒌𝒉𝒊𝒍 , edited 08:05