2022-05-28 08:56:57
परम् न्यायधीश (२)
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त्यागना तो पड़ेगा ही, जितनी जरूरत है उतना ले लो उससे ज्यादा मत लो नहीं तो गधे बन जाओगे, कब तक ढोओगे? यही शनि उवाच है। जितना ढो सकते हो उतना ढोओ उससे ज्यादा ढोने की कोशिश मत करो। जितना वजन लेकर बालक पैदा होता है उतना ही वजन मरने के बाद अस्थियों का होता है इससे एक रत्ती भी ज्यादा नहीं। शिव लोक में गणेश ने जन्म लिया महान कौतुक समस्त ब्रह्माण्ड में छा गया। शिव जैसा योगी पिता बन गये, काम को दग्ध करने वाला शिव आज पिता बन गये अतः चारों तरफ प्रसन्नता छा गई। ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र, कुबेर, सरस्वती, बृहस्पति, सूर्य सबने जी भरकर दान दक्षिणा देना प्रारम्भ किया। अब दान दक्षिणा इतनी ज्यादा हो गई कि ब्राह्मणों से उठ ही नहीं रही थी, वे सबके सब दान की हुई वस्तुओं को उठाने में असमर्थ हो गये। एक-एक कर सभी देवगण आते और गणेश के मुख का दर्शन कर हर्षित हो उठते तभी शनि देव भी आ गये गणपति के दर्शनार्थ शनि देव नीचे दृष्टि किए हुए जगदम्बिका के सामने खड़े थे, जगदम्बा ने कहा हे शनि देव आप भी मेरे पुत्र का मुख क्यों नहीं देखते? शनि देव अपनी दृष्टि की विशेषता जानते थे अतः उन्होंने साफ-साफ कहा कि हे मातेश्वरी मेरी दृष्टि गणेश का अनिष्ट कर सकती है इसलिए मैं इनके मुख की तरफ नहीं देखूंगा परन्तु जगदम्बा बोली यह शिव लोक है यहाँ कर्म के सिद्धांत नहीं चलते। गणेश, शिव और शक्ति का पुत्र है तुम निर्भय होकर इसके दर्शन करो। शनि ने दुःखी मन से नेत्र के एक कोने से गणपति पर दृष्टि डाली और दूसरे ही क्षण गणपति का शीश ब्रह्माण्ड में उड़ गया एवं रक्त रंजित धड़ जगदम्बा की गोद में पड़ा रहा।
दूसरे ही क्षण जगदम्बा की समस्त कलायें जाग उठीं, एक साथ दस महाविद्याएं उठ खड़ी हुईं, प्रत्यंगिरा, नित्याएं, अघोरनी, चाण्डालिका, कर्कशिका, दारुणिका, विदारिका इत्यादि सबकी सब उग्र हो उठीं। काली ने सबका भक्षण शुरु कर दिया, छिन्नमस्ता ने शीर्षों को छिन्न छिन्न करना प्रारम्भ कर दिया, 64 योगिनियों ने रक्त की धारायें बहा दी, दक्षिण काली ने चारों तरफ ज्वर ही ज्वर फैला दिया, धूमावती ने समस्त ब्रह्माण्ड को धुए में ढँक दिया एवं शिवगणों का भी भक्षण करने लगीं। बगलामुखी ने सूर्य, पवन, अग्नि, इन्द्र, यम, जल, इत्यादि ब्रह्माण्ड के प्रत्येक लोक और तत्व को स्तम्भित करके रख दिया। अट्ठाहसिका अट्ठाहस करने लगीं, मातंगी ने स्वरों का भी लोप कर दिया, राज राजेश्वरी ने ब्रह्माण्ड उलटकर रख दिया, जगदम्बा के त्रिनेत्र से एक एक करके असंख्य महा विकराल रूप लिए करालिकाएं उत्पन्न होने लगीं। शिव की कुछ समझ में नहीं आया, ब्रह्मा किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो गये उनकी सृष्टि तृण के समान नष्ट होने लगी बस समस्त ब्रह्माण्ड में हूंकार ही हूंकार थी।
श्रीहरि गरुड़ पर सवार हो सुदर्शन चक्र ले दौड़े और गज मुख लाकर गणेश के धड़ पर स्थापित कर दिया। श्री हरि आज अपनी बहिन जगदम्बा का रौद्र रूप देख समझ गये थे कि अब उनके कर्म के सिद्धांत के प्रवर्तक शनि की खैर नहीं है। कुपित जगदम्बा ने भस्माग्नि से सम्पूर्ण नेत्रों से शनि की तरफ देखा। क्रूर को महाक्रूर दृष्टि से देखा और श्राप देते हुए कहा जा अंगहीन हो जा और देखते ही देखते शनि की टांग टूट गई, वह लड़खड़ाकर चलने लगे, श्रीहरि के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गये रक्षार्थ हेतु । श्रीहरि ने तुरंत अपने सुदर्शन चक्र में से एक अंश त्रैलोक्य मोहन गणेश कवच के रूप में उदित कर दिया और उसे शनि को धारण करा दिया। नीचे श्रीहरि द्वारा सुदर्शन चक्र में से प्रादुर्भावित दिव्य गणेश कवच का वर्णन है
त्रैलोक्य मोहन गणेश कवचसंसारमोहनस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः ।
ऋषिश्छन्दश्च बृहतो देवो लम्बोदरः स्वयम् ॥
धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः ।
सर्वेषां कवचानां च सारभूतमिदं मुने।।
ॐ गं हुं श्रीगणेशाय स्वाहा मे पातु मस्तकम् ।
द्वात्रिंशदक्षरो मन्त्रो ललाटो मे सदाऽवतु ॥
ॐ ह्रीं क्लीं गमिति च संततं पातु लोचनम् ।
तालुकं पातु विघ्नेश: संततं धरणीतले ॥
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींमिति च संततं पातु नासिकाम् ।
ॐ गौं गं शूर्पकर्णाय स्वाहा पात्वधरं मम।।
दन्तानि तालुकां जिह्वां पातु मे षोडशाक्षरः ।
ॐ लं श्रीं लम्बोदरायेति स्वाहा गण्डं सदाऽवतु ।।
ॐ क्लीं ह्रीं विघ्ननाशाय स्वाहा कर्ण सदाऽवतु ।
ॐ श्रीं गं गजाननायेति स्वाहा स्कन्धं सदाऽवतु ।।
ॐ ह्रीं विनायकायेति स्वाहा पृष्ठं सदाऽवतु ।
ॐ क्लीं हीमिति कङ्कालं पातु वक्षःस्थलं च गम्।।
करौ पादौ सदा पातु सर्वाङ्गं विघ्ननिघ्नकृत् ॥
प्राच्यां लम्बोदरः पातु आग्नेय्यां विघ्जनायकः ।
(क्रमशः)
@Sanatan
359 views𝑺𝒂𝒕𝒚𝒂𝒎 𝒏𝒊𝒌𝒉𝒊𝒍 , edited 05:56