2022-06-07 10:23:45
श्री प्रत्यंगिरायै नमो नम:
------------------------------ हे महाकालिके, हे प्रथमा, हे आद्या, हे महाविपरीत प्रत्यंगिरे जब साधक के बड़े पुण्य भाग जागते हैं तब वह तेरे नाम का उच्चारण करता है। वह साधक परम सौभाग्यवान है जो तुझे भजता है, साथ ही साथ जब तू स्वयं साधक को अपना लेती है तो इस प्रकार के कालिकामय साधक के दिव्य भाग्य पर देवता भी विस्मित हो जाते हैं। हे कालिका तेरी साधना से साधक के जीवन में परा ब्रह्माण्डीय प्रत्यंगिरा शासन प्रारम्भ हो जाता है और उसकी एकमात्र शासनाध्यक्षा तू होती है। तू ही साधक के जीवन में घटने वाले प्रत्येक क्षण को प्रत्यक्ष रूप से देखती है, प्रत्यक्ष निर्णय लेती है और इस प्रकार वह साक्षात् काल और महाकाल से परे अकाल हो जाता है। इस प्रकार काल एवं महाकाल साधक के जीवन में मौजूद काल के क्षणों को प्रभावित नहीं कर पाते तो फिर औरों की क्या बिसात? ग्रह, नक्षत्र, देवी-देवता, राशियाँ, असुर, गंधर्व यहाँ तक कि शिव और ब्रह्मा, रुद्र, विष्णु, रोग, मृत्यु कोई भी साधक के जीवनकाल में प्रविष्ट हो क्रियाशील नहीं हो पाता। जो सबका प्रवेश निषेध कर दे, सबके कर्म साधक के ऊपर वर्जित कर दे, सभी प्रकार के कृत्य-कुकृत्य का निरोध कर दे, निषेध कर दे ऐसा है तेरा स्वरूप हे महाविपरीत प्रत्यंगिरे जो तुझे पूजता है, तुझे भजता है तू उसे किसी अन्य को पूजने भजने नहीं देती एवं उसके जीवन का लक्ष्य-निर्धारण, उसकी जरूरतें, उसकी इच्छाएं इत्यादि का तू स्वयं भरण-पोषण करती है। यही रहस्य है हे कालिके तेरा महाकाल के ऊपर नर्तन करने का अतः कालिका के साधक के लिए तो महाकाल भी शव स्वरूप होता है तो फिर काल की क्या बिसात?
ऐसे साधक का जीवन घड़ी की सुइयों से निर्धारित नहीं होता। वर्ष, महीने, दिन, मुहूर्त इत्यादि महाप्रत्यंगिरा के साधक के लिए कोई मायने नहीं रखते क्योंकि इन सबका अधिनायक महाकाल तो स्वयं हे प्रत्यंगिरे तेरे चरणों में पड़ा हुआ है भला वह तेरी आज्ञा कैसे टाल सकता है ? ब्रह्माण्ड की सबसे अति विकसित युद्ध मशीन अर्थात समग्र शस्त्र प्रणाली के रूप में तू अपने साधक के अंदर और बाहर क्रियाशील हो उठती है। "ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रूं...... हूं हूं स्वाहा" इस मंत्र का तात्पर्य है कि अगर मेरे जातक की तरफ नजर उठाकर देखी, उससे छेड़खानी की, उससे खेलने की कोशिश की, उसे परेशान करने की कोशिश की, उससे कुछ मांगने या छीनने की कोशिश की तो शव बना दिए जाओगे, मुर्दे में परिवर्तित कर दिए जाओगे और तुम्हारा स्थान होगा महाश्मशान जहाँ मेरी समस्त प्रत्यंगिरा स्वरूपिणीं काली-नित्याएं, महायोगिनियाँ तुम्हारा उसी प्रकार भक्षण करेंगी, तुम्हारा उसी प्रकार मर्दन करेंगी जिस प्रकार श्री दुर्गा सप्तशती में वर्णित युद्ध में असुरों का हुआ था।
हे महाप्रत्यंगिरा तू महायुद्ध की नायिका है, तेरे अंदर से ही समस्त प्रकार के युद्धों का जन्म होता है, तू शस्त्र-बिन्दु है। इस ब्रह्माण्ड में जितने भी स्थूल, जैविक, सूक्ष्म, आणविक, परमाणविक, दैवीय, परादैवीय, मंत्रात्मक, तंत्रात्मक, संकलात्मक इत्यादि-इत्यादि शस्त्र हैं अस्त्र हैं वे सब तुझी में से उत्पन्न होते हैं। हे प्रत्यंगिरे तू परम काट है, तू दिव्य तोड़ है, तू परम औषधि है तू परा निदान है। संसार में ऐसा कोई रोग नहीं, ऐसा कोई शत्रु नहीं, ऐसा कोई वाक्य नहीं, ऐसा कोई मुण्ड नहीं, ऐसा कोई षडयंत्र नहीं, ऐसा कोई मारकेश नहीं, ऐसा कोई शास्त्र नहीं, ऐसा कोई मंत्र नहीं, ऐसा कोई विज्ञान नहीं इत्यादि इत्यादि जिसकी काट, जिसका तोड़ तेरे पास मौजूद न हो एवं यही श्री दुर्गा-सप्तशती में वर्णित युद्ध में तूने स्पष्ट रूप से दिखाया है। तू शिवास्त्र की भी काट रखती है उसे भी क्षण भर में बेकार कर सकती है यही तेरे अट्ठाहास और हूँ हूँ के नाद का रहस्य है।
(क्रमशः)
@Sanatan
863 views𝑺𝒂𝒕𝒚𝒂𝒎 𝒏𝒊𝒌𝒉𝒊𝒍 , edited 07:23